नेतृत्व लीडर्शिप
नेतृत्व वह गतिशील शक्ति है जो प्रत्येक सामूहिक प्रयास की सफलता के लिए प्राथमिक अवस्यकता है कुशल नेतृत्व के अभाव में कोई भी संस्था या समूह अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने मे सफल नहीं हो सकता है । संस्था के अस्तित्व के लिए ही नहीं, बल्कि इसके की भूमिका सर्वोपरि है। इसलिए प्राय: यहाँ तक भी कहा जाता है कि कोई संस्था तभी सफल हो सकती है जबकि उसका प्रबन्धक अपनी नेतृत्व भूमिका को निभाता है ।
नेतृत्व :अर्थ एवं परिभाषाएँ नेतृत्व की परिभाषा भी भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों से की गई है। व्यवहारवादी प्रबन्धशास्त्रियों ने नेतृत्व को दूसरों को प्रभावित करने की प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया है, जबकि अन्य प्रबंधशास्त्रियों ने इसे उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु मार्गदर्शन करने की कला या गुण के रूप में परिभासित किया है। नेतृत्व की कुछेक विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषाएँ यहाँ दी जा रही हैं।
- कीथ डेविस के अनुसार, नेतृत्व दूसरे व्यक्तियों को पुर्व-निर्धारित उदेश्यों को उत्साहपुर्वक प्राप्त करने के लिए प्रेरित करने की योग्यता हैं। यह वह मानवीय तत्व है जो एक समूह को एक सूत्र में बाँधे रखता है और इसे लक्ष्य की ओर अभिप्रेरित करता है।
- लिविंग्सटान के अनुसार ,नेतृत्व अन्य लोगों मे किसी सामान्य उद्देस्य का अनुसरण करने की इच्छा जागृत करने की योग्यता है ।
- बर्नार्ड के अनुसार, नेतृत्व से तात्पर्य किन्हीं व्यक्तियों के व्यवहार का वह गुण है जिसके द्वारा सामुहिक प्रयास में लोगों या उनकी क्रियाओं का सार्यदर्शन करते हैं।
- रॉबर्ट अलबानींज के अनुसार, श्रबन्धकीय नेतृत्व वह व्यवहार हैं जो स्वैच्छिक अनुयामी व्यवहार उत्पन्न करता है जो कार्य निष्पादन की न्यूनतम आवश्यकता के अतिरिक्त पाया जाता है ।
- कूंज तथा ऑडॉनेल के शब्दों में "नेतृत्व लक्ष्य प्राप्ति हेतू परस्पर प्रभाव डालने की योग्यता है।
- टीड के अनुसार, नेतृत्व गुर्णों का वह संयोजन है जिनके होने से कोई भी व्यक्ति अन्य व्यक्तियों से कुछ करवाने के योग्य होता है. क्योंकि वे उसकें प्रभाव से हीं कार्य करने के लिए तत्पर होते हैं।
- टैरी तथा फ्रेंकलिन के अनुसार, निठ्ृत्व वह सम्बन्ध है अन्तर्गत एक व्यक्ति निंत दूसरों को समूह अथवा तथा नेता द्वारा इक्तित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए स्वेच्छापूर्वक सम्बन्धित क्रियाओं में साथ कार्य करने के लिए प्रभावित करता है।
- अल्फ्रेड तथा बींटी के अनुसार, नेतृत्व वह गुण है जिसके द्वारा अनुयायियों के समूह से डइच्तित कार्य स्वेच्छापूर्क अथवा बिना किसी दबाव के करवायें जाते हैं।
इस प्रकार स्पष्ट है कि प्रबन्धकीय नेतृत्व एक व्यावहारिक गुणा या व्यवहार है । जिसके द्वारा एक व्यक्ति दूसरे व्यक्तियों को स्वेच्छा से अपनी संस्था के उद्देश्यों को प्रार्थी हेतु कार्य करने के लिए मार्गदर्शन एवं प्रेरणा देता है। नेता अपने व्यवहार से अपने अनुयाईओ को इस प्रकार प्रभावित करता है जिससे वे अपने कार्य की न्यूनतम आवश्यकताओं से भी अधिक स्वेच्छा पूर्वक कार्य करने को तत्पर होते हैं। नेतृत्व दूसरों को प्रभावित करने तथा दूसरों के साथ व्यवहार करने का कार्य है। यह आपसी व्यवहार की वह कला है, जिससे उद्देश्यों की प्राप्ति मे अन्य लोगों का सहयोग प्राप्त किया जाता है।
नेतृत्व की प्रकृति या विशेषताएँ
विशेषताओं नेतृत्व की प्रकृति को भली प्रकार से समझने के लिए इसकी कुछेक दी विशेषताओं का विश्लेषण करना आवश्यक है। इसकी कुछेक प्रमुख विशेषताएँ अग्रानुसार है :
1.व्यक्तिगत गुण : नेतृत्व की प्रथम विशेषता यह है कि यह एक व्यक्तिगत गुण है । यह नेता का भौतिक गुण नहीं है, बल्कि यह व्यावहारिक गुण है जिससे व दूसरे व्याकटीओ को प्रभवित करता है अथवा उनका मार्गदर्शन करता है। बर्नार्ड ने भी इसीलिए लिखा है नेतृत्व किसी व्यक्ति के व्यवहार का वह गुण है जिसके द्वारा वह अन्य लोगों का मार्गदर्शन करता है कूंज तथा ओ'डोनेल ने भी इसे लोगों को प्रभावित करने की योग्यता ही कहा है।
2.नेतृत्व कार्य करने पर निर्भर है : नेतृत्व एक गुण है, किन्तु जब तक इस गुण को उपयोग में नहीं लाया जाता है, तब तक नेतृत्व के गुण का कोई लाभ नहीं होत है।
3. नेतृत्व क्षमता विकसित एवं प्राप्त की जाती है : कुछ भ्रांतिया ऐसी भी रही है की नेता पैदा होते हैं, बनाये नहीं जाते।' किन्तु, आज इस धारणा का कोई महत्व नहीं है । अब नेतृत्व क्षमता को व्यवस्थित किया जाता है। लोग स्वतः भी नेतृत्व क्षमता का विकास कर लेते हैं। प्रो. रोस तथा हैंड्री ने ठीक ही लिखा है कि नेतृत्व क्षमता जन्म लेती है विकसित होती है तथा इसे प्राप्त किया जा सकता है।'
4. अनुयायी : प्रत्येक सिक्के का दूसरा पहलू भी होता है। इसी प्रकार नेतृत्व का दूसरा पहलू उसके अनुयायी हैं। अनुयायियों के बिना नेतृत्व नहीं किया जा सकता है। अत: नेतृत्व के लिए अनुयायियों का समूह अवश्य होना चाहिए!
5. आपसी सम्बन्धों पर आधारित : नेतृत्व आपसी सम्बन्धों की स्थिति में ही जन्म लेता है तथा विकसित होता है। ये आपसी सम्बन्ध अनुयायियों तथा नेता के बीच होने आवश्यक हैं |
6. प्रमावित करने या मार्गदर्शन करने की कला : नेतृत्व अन्य लोगों को प्रभावित करने या मार्गदर्शन करने की कला है। नेता इस कला के द्वारा अपने अनुयायियों या अधीनस्थों को इस प्रकार प्रभावित करता है या उनका मार्गदर्शन करता है कि वे स्वेच्छा से नेता की इच्छाओं के अनुरूप कार्य करने के लिए तत्पर हो जाते हैं।
7. सामूहिक हित या हितों की एकता : नेतृत्व की एक विशेषता यह है कि इसके उद्देश्यों मे संगठन, नेता तथा अनुयायियों- तीनों के ही हित निहित हैं। कुशल नेतृत्व तीनों के ही हितों की ; पूर्ति के लिए प्रयास करता है। टेरी ने ठीक ही कहा है कि “नेतृत्व पारस्परिक लक्ष्यों हितों की पूर्ति हेतु लोगों को स्वैच्डिक प्रयास करने की प्रेरणा देता है संक्षेप में नेतृत्व की सफलता के लिए तीनों के ही हितों में एकता तथा उनकी पूर्ति होना परमावश्यक है।
8. गतिशील प्रक्रिया : नेतृत्व एक गतिशील प्रक्रिया है, जो निरंतर रूप से चलती रहती है । जब तक व्यक्तियों का समूह या संगठन विद्यमान रहता है, तब तक नेतृत्व की भी प्रक्रिया चलती रहती है ।
9.गतिशील शक्ति या कला : नेतृत्व एक गतिशील शक्ति या कला है जो समय एवं परिस्थितियों के अनुरूप उपयोग में लायी जाती है। दूसरे शब्दों मे नेतृत्व के सभी तरीकों विधियाँ, शैलियों को सभी परिस्थितियों में समान रूप से लागू नहीं किया जाता हैं, समय तथा परिस्थितियों के अनुरूप चातुर्य का उपयोग करते हुए नेतृत्व प्रणाली या शैली का उपयोग किया जा सकता है।
10. अनुकरणीय आचरण: नेतृत्व की सफलता मे नेता का आचरण एसा होना चाहिए जिसे उसके अनुयाई अपना सके ।
11. औपचारिक एवं अनौपचारिक : नेतृत्व की एक विशेषता यह भी है कि यह औपचारिक एवं अनोपचारिक- दोनों ही रूपों में पाया जाता है। संस्था का प्रबन्धक औपचारिक नेता तो हो सकता है, किन्तु वह कभी-कभी अनौपचारिक रूप में भी अपने समूह या अधीनस्थों का नेतृत्व करता है।
12. लक्ष्य प्रधान :ननेतृत्व लक्ष्य प्रधान होता है प्रत्येक नेता सामूहिक एवं व्यक्तिगत उद्देश्यो की प्राप्ति के लिए ही अपने अनुयाइयों या अधीनस्थों के व्यवहार को प्रभावित करता है और उनका मार्गदर्शन करता है ।
13. सभी प्रबन्धक नेता नहीं होते : नेतृत्व की अन्तिम किन्तु सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि सभी प्रबन्धक नेता नहीं होते हैं। दूसरे शब्दों में, नेतृत्व एवं प्रबन्ध में अन्तर होता है। प्रबन्धक दूसरों से कार्य करवाता है, जिसके लिए उसके पास औपचारिक अधिकार होते हैं, जबकि नेता नेतृत्व के द्वारा लोगों को स्वेच्छा से कार्य करने के लिए प्रेरित या प्रभावित करता है।
14. सकारात्मक एवं नकारात्मक : नेतृत्व सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों ही प्रकार का हो सकता है।
नेतृत्व की विचारधाराएँ
नेतृत्व की अनेक विचारधाराएँ प्रचलित हो चुकी हैं । प्रमुख विचारधाराएँ निम्नानुसार हैं :
1 . गुणमूलक विचारधारा;
2. व्यावहारिक विचारधारा;
3. परिस्थितिमूलक विचाधारा; तथा
4. अनुयायी कल्याण विचारधारा |
1 .गुणमूलक विचारधारा
नेतृत्व की सबसे प्राचीन विचारधारा गुणमूलक विचारधारा है। इस विचारधारा को प्रतिपादित करने का श्रेय चेस्टर आई बर्नार्ड , ओर्डवे टीड आदि की दिया जाता है। इन्होंने विश्व के अनेक सुप्रसिद्ध नेताओं के गुणों का अध्ययन करके यह पाया कि सफल नेताओं में कछ विशिष्ट वैयक्तिक गुण या लक्षण पाये जाते हैं। इसी आधार पर इन विद्वानों ने यह निष्कर्ष निकाला कि _ जिन व्यक्तियों में ये विशिष्ट गुण होते हैं, वे एक न एक दिन सफल नेता अवश्य बनते हैं। गुणमूलक विचारधारा इस मान्यता पर आधारित है कि नेता की सफलता उसके कुछ विशिष्ट _व्यक्तिगत गुणों पर निर्भर करती है। जिस व्यक्ति में ये विशिष्ट गुण पाये जाते हैं. वह सफल नेता बन जाए है। इन के अभाव में वह व्यक्ति एक सफल नेता नहीं उन सकता है। विभिन्न शोध परिणामों के अनुसार एक सफल नेता मे भिन्न भिन्न गुण पाए जाते है कुछ शोधकर्ताओ के अनुशार तो गुणों की संख्या दर्जनों में नहीं बल्कि सैकड़ों में ही है। कुछ शोधकर्ताओं ने सफल विद्वानों ने एक नेता में पाये जाने वाले गुणों की सीमित सूची बनायी है । नेता के लिए निम्नलिखित गुणा, को आवश्यक माना है” शारीरिक शक्ति एवं स्फूर्ति आत्म-विश्वास, उत्साह, उद्देश्यों के प्रति निष्ठा, निर्णयन क्षमता, तकनीकी योग्यता, निरीक्षण क्षमता, कुशाग्र बुद्धि, तर्क-शक्ति, विश्वसनीयता, सम्प्रेषण क्षमता, इत्यादि ।
प्रारंभ में तो यह माना जाता था कि “नेता में समस्त गुण जन्मदाता होते हैं तथा यह विश्वास किया जाता था कि नेता पैदा होते हैं, बनाये नहीं जाते हैं।' किन्तु, अब यह विश्वास किया जाने लगा है कि नेता के गुण विकसित भी किये जा सकते हैं। ओर्डवे टीड ने लिखा है कि "नेता जन्मते भी हैं और बनाये शी जाते हैं। जिन व्यक्तियों में नेता के लिए आवश्यक गुण होते हैं या विकसित हो जाते हैं वे अवसर पाते ही स्वतः नेता के रुप में उमर कर सामने आ जाते हैं” समालोचना : नेतृत्व की गुणमूलक विचारधारा के कुछ लाभ या गुण निम्नानुसार हैं :
1. यह विचारधारा अत्यन्त सरल एवं समझने योग्य है।
2. यह विचारधारा अच्छे नेता के सभी व्यक्तिगत गुणों (शारीरिक, मानसिक, चारित्रिक एवं व्यावसायिक गुणों) को महत्व देती है।
3. इन गुगों के आधार पर कहीं पर भी अच्छे नेता (प्रबन्धक) का चुनाव करना आसान हो जाता है। यह विचारधारा नेताओं के प्रशिक्षण के लिए उपयुक्त मार्गदर्शन करती है।
5. यह विचारधारा नेता के गुणों को ही उसकी सफलता का आधार मानती है, जबकि व्यवहार में नेता की सफलता सम्पूर्ण वातावरण की परिस्थितियों से प्रभावित होती है|
6. यह विचारधारा नेता के गुणों को ही उसकी सफलता का आधार मानती है, जबकि व्यवहार में नेता की सफलता सम्पूर्ण वातावरण की परिस्थितियों से प्रभावित होती है।
7.आज तक नेता के किनहीं सामान्य गुणों को एक मत में स्वीकार नहीं किया गया है । शोधकर्ताओं नेता में भिन्न-भिन्न गुर्णों के विद्यमान होने की बात कहते हैं। प्रो. जेनिंग्स ने ठीक ही लिखा है कि 'पचास वर्षों के अध्ययनकाल में भी व्यक्तित्व के किन्हीं निश्चित गुणों की खोज नहीं कीं जा सकीं है जिसके आधार पर नेता तथा अनेता में अन्तर किया जा सके।
8. इस विचारधारा के समर्थकों द्वारा नेता के कई गुणों को बताया गया है, किन्तु इन गुणों की मात्रा तथा अनुपात को किसी ने नहीं बताया है। जबकि व्यवहार में हम एक को अच्छा, दूसरे कों अधिक अच्छा, तीसरे को श्रेष्ठ नेता कहते हैं। अतः गुणों को तुलनात्मक महत्व न दिये जाने के कारण यह विचारधारा और कमजोर हो जाती है।
9. इस क विचारधारा की आलोचना इस आधार पर की जाती है कि नेताओं के गुणों को -सहीं मापना कठिन हैं। यद्यपिं व्यक्तित्व के गुणों को मापने के लिए अनेक तरीकों का उपयोग किया जाता है, या थी , किन्तु उन तरीकों से सही निष्कर्ष प्राप्त करना कठिन होता ।
2. व्यावहारिक या व्यवहारवादी विचारधारा
व्यावहारिक विचारधारा नेता के व्यवहार अर्थात् कार्यों के विश्लेषण पर आधारित है। यह विचारधारा यह मानती है कि नेता की सफलता केवल नेता के गुणों पर निर्भर नहीं करती है, बल्कि उसके कार्यों एवं व्यवहार पर निर्भर करती है।
यह विचारधारा यह मानती है कि नेता का कार्य तथा व्यवहार चार तत्वों से प्रभावित होता है। वे है 1. नेता, 2. अनुयायी, 3. लक्ष्य एवं 4. वातावरण। ये चारों तत्व एक-दूसरे को भी प्रभावित करते हैं तथा नेता के व्यवहार को निर्धारित करते हैं।
प्रन्धक या नेता का एक विशेष प्रकार का व्यवहार या कार्य उसे अच्छा नेता बनाता है, किन्तु उसके विपरीत प्रकार का व्यवहार किसी भी नेता को अस्वीकार करवा देता है। इस दृष्टि से देखा जाये, तो नेतृत्व की क्रियाओं को दो भागों में बांटा जा सकता है- प्रथम, वृत्तिमूलक या क्रियात्मक तथा द्वितीय, दुष्प्रवृत्तिमूलक क्रियाएँ। नेता को ऐसा व्यवहार का कार्य करना पड़ता है जिससे उसके अनुयायी सन्तुष्ट होते हों। अत: अनुयायियों को अभिप्रेरित करना, उनका मनोबल ऊँचा उठाना, उनमें समूह भावना का निर्माण करना, प्रमावकारी संचार व्यवस्था बनाना आदि नेता के वृत्तिमूलक कार्य हैं, जिनसे उसके नेतृत्व का प्रभाव बढ़ता है।
दूसरी ओर नेता के व्यवहार में जब दुष्प्वृत्तमूलक क्रियाएँ उत्पन्न हो जाती हैं, तो उसके नेतृत्व का प्रभाव भी कम होने लगता है। उदाहरण के लिए, अधीनस्थों या अनुयायियों के विचारों पर ध्यान न देना, मानवीय सम्बन्धों के निर्माण का प्रयास न करना, अपरिपक्व व्यवहार करना तथा | सन्देशों के आदान-प्रदान में लापरवाही बरतना आदि ऐसी ही क्रियाएँ हैं, जिनसे नेता के प्रभाव में कमी आ जाती हैं। अत: नेता को सदव्यवहार ही नहीं करना चाहिये बल्कि अनुयायियों को | स्वीकार्य व्यवहार भी करना चाहिए, तभी उसके नेतृत्व का प्रभाव बढ़ता है। । यह उल्लेखनीय है कि एक नेता अपने अनुयायियों का नेतृत्व करने के लिए मानवीय, तकनीकी एवं सैद्धान्तिक योग्यताओं का उपयोग करता है। मानवीय योग्यता नेता की वह योग्यता | है जिससे वह लोगों के साथ प्रभावकारी ढंग से आपसी सम्बन्ध बनाता है तथा उनमें समूह | भावना का विकास करता है। तकनीकी योग्यता से तात्पर्य व्यक्ति की अपने कार्य के सम्बन्ध में जानकारी से है| सैद्धान्तिक योग्यता वह योग्यता है जिसके द्वारा अपनी कार्यस्थिति को समझता है तथा उसके अनुरूप कार्यों की कल्पना करता है तथा उनकों पूरा करने की योजना बनाता है| व्यावहारिक विचारधारा के आधार पर अब तक अनेक विद्वान शोध कर चुके हैं। इनमें रेनसिस लिकर्ट, स्टोगडिल ब्लेक तथा माउण्टन आदि के नाम उल्लेखनीय हैं । इन सभी विद्वानों ने अपने शोध निष्कर्षों के बाद विभिन्न परिस्थितियों में विभिन्न प्रकार के नेतृत्वव्यवहारों को अपनाने का सुझाव दिया है ।
उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि गुणात्मक विचारधारा एवं व्यावहारिक विचारधारा के बीच एक आधारभूत अन्तर है। गुणमूलक विचारधारा इस बात पर बल देती है कि नेता की सफलता के लिए उसमें कुछ विशिष्ट गुण होने आवश्यक हैं, जबकि व्यावहारिक विचारधारा यह कहती है कि नेता की सफलता के लिए उसका विशिष्ट प्रकार का व्यवहार होना आवश्यक है | समालोचना : व्यावहारिक विचारधारा का सबसे बड़ा गुण यह हैं कि यह विचारधारा यह मानती है कि नेता का एक विशेष प्रकार का सकारात्मक व्यवहार उसके अनुयायियों को अधिक संतोष प्रदान करता है तथा वह नेता के रूप में स्वीकार कर लिया जाता है।
किन्तु, इस विचारधारा का दोष भी है। वह यह है कि एक विशेष प्रकार का व्यवहार एक विशेष समय पर प्रभावकारी हो सकता है, किन्तु किसी अन्य समय एवं परिस्थितियों में वह व्यवहार प्रभावकारी हो, यह आवश्यक नहीं है। इस प्रकार की विचारधारा में समय तत्व महत्वपूर्ण होता है, किन्तु इस विचारधारा में इस पर विचार नहीं किया गया है।
3. परिस्थितिमूलक विचारघारा
नेतृत्व की परिस्थितिमूलक या परिस्थितिजन्य विचारधारा में नेता के कार्य में वातावरण की परिस्थितियों को महत्व दिया गया है। इस विचारधारा के अनुसार नेता या नेतृत्व की प्रभावशीलता उन परिस्थितियों पर निर्भर करती है, जिनमें नेता कार्य करता है। अत: इस विचारधारा की यह मान्यता है कि नेतृत्व की कोई भी शैली या प्रणाली सदैव सभी परिस्थितियों में उपयुक्त नहीं होती है। यहीं नहीं, नेतृत्व की काई शैली सर्वोत्तम नहीं होती है। अतः प्रत्येक नेता को अपने वातावरण की परिस्थितियों के अनुरूप ही नेतृत्व शैली या प्रणाली चुननी एवं अपनानी चाहिए, तभी वह सफल हो सकता है, अन्यथी नहीं | इस प्रकार स्पष्ट है कि नेतृत्व की सफलता उसकी परिस्थितियों पर निर्भर करती है। ओहियो राज्य विश्वविद्यालय के शोध केन्द्र ने नेतृत्व को प्रभावित करने वाली परिस्थितियों को चार वर्गों में विभक्त किया है।
- सांस्कृतिक वातावरण,
- वैयक्तिक मिन्नताएँ,
- कार्य भिन्नताएँ
- संगठनात्मक भिन्नताएँ |
- सांस्कृतिक वातावरण : समाज के विश्वास, मान्यताओं एवं मूल्यों से संस्कृति का निर्माण होता के अतः समाज के लोग इन सांस्कृतिक तत्वों से प्रभावित होकर व्यवहार करते हैं। अतः नेता को इन सांस्कृतिक तत्वों से उत्पन्न वातावरण को ध्यान में रखना पड़ता है, तभी वे अपने अनुयायियों को हद से प्रभावित कर सकते हैं।
- वैयक्तिक मिन्नताएँ : नेता के अनुयायियों में वैयक्तिक भिन्नता पाई पायी जाती हैं ।
- कार्य-भिन्नताएँ : प्रत्येक व्यक्ति एक समान कार्य नहीं करता है किसी कार्य में शारीरिक श्रम की आवस्यकता अधिक होती है, तो किसी में मानसिक चातुर्य की आवश्यकता अधिक पड़तीहै कार्य में मानसिक तनाव अधिक उत्पन्न हो सकता है, तो किसी में कम।
- संगठनात्मक भिन्नताएँ : व्यवहार में संगठनात्मक या संस्थागत भिन्नताएँ भी पायी जाती हैं । आकार, स्वामित्व, उद्देश्यों, क्रियाओं आदि के आधार पर भिन्न-भिन्न प्रकार के संगठन पाये जाते हैं। नेता सभी संगठनों में समान प्रकार की नेतृत्व शैली अपनाकर सफल नहीं हो सकते हैं। ;| इस प्रकार स्पष्ट है कि संस्कृतियों, व्यक्तियों, कार्यों तथा संस्थाओं में भिन्नताएँ पायी जाती हैं । फलतः नेता का कार्य वातावरण तथा कार्य परिस्थितियाँ भी एक-समान नहीं होती हैं। अत: नेता को अपनी परिस्थितियों के अनुरूप नेतृत्व शैली अपनानी पड़ती है।
परिस्थितिमूलक विचारधारा के आधार पर नेतृत्व के अब तक निम्नलिखित प्रमुख मॉडल या प्रतिमान विकसित किये जा चुके हैं |
- फीलडर का सांयोगिक मॉडल
- हाउस का पथ लक्ष्य मॉडल
- जीवन चक्र मॉडल
- ब्रूम तथा येटन का आदर्श मॉडल
ये सभी मॉडल नेतृत्व की परिस्थितिमूलक विचारधारा की मान्यताओं के आधार पर विकसित किये गये हैं ।
समालोचना : नेतृत्व की इस विचारधारा का अपना विशेष महत्व है। इस विचारधारा के कुछ सकारात्मक पहलू या कुछ गुण निम्नानुसार हैं : की
- यह विचारधारा वास्तविकता के धरातल पर टिकी है, क्योंकि यहीं विचारधारा यह मानती है कि नेतृत्व की काई भी शैली सर्वश्रेष्ठ नहीं होती है|
- यह विचारधारा परिस्थितियों के विश्लेषण के आधार पर उचित नेतृत्व शैली अपनाने का सुझाव देती है। अतः यह एक नेता को उचित मार्गदर्शन देती है।
- यह विचारधारा नेता के गुणों का मूल्यांकन या मापन करने का साधन प्रस्तुत करती है।
परंतु इस विचारधारा की कुछ कमियाँ या दोष भी हैं, जो निम्नानुसार हैं : ही ।. इस विचारधारा की सबसे बड़ी कमी यह है कि यह विचारधारा यह नहीं हा है कि एक नेता- जो एक परिस्थिति मैं महत्वपूर्ण है, वह दूसरी परिस्थिति में योग्य होगा अथवा नहीं ।
यह विचारधारा परिस्थितियों को महत्त्वपूर्ण मानती है। परिस्थितियों के आधार पर नेता की सफलता एवं असफलता को निर्धारित किया जाता है। अतः: नेता की भक्तिगत योग्यता का महत्व गौण हो जाता है। 3. यह विचारधारा प्रभावकारी नेता बनाने या विकसित करने की प्रक्रिया नहीं बताती है| अतः इसका नेतृत्व के विकास में योगदान नहीं मिलता है।
4 .अनुयायी कल्याण विचारधारा
यह विचारधारा इस मान्यता पर आधारित है कि अनुयायियों की कुछ आशाएँ तथा अपेक्षाएँ होती हैं। अतः अनुयायी उसे अपना नेता मानते हैं जिससे उन्हें उनकी आशाओं एवं अपेक्षाओं की पूर्ति होती दिखाई देती है। ऐसी स्थिति में वहीं व्यक्ति नेता होता है, जो लोगों की अपेक्षाओं एवं आशाओं की पूर्ति में योगदान देने की क्षमता रखता है।