ओमिक्रॉन BF.7 कोरोना वाईरास ,Omicron BF.7

 




चीन में मच रहे कोहराम के पीछे ओमिक्रॉन BF.7 है, जिसने दुनियाभर के देशों को चौंका दिया है।कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए सार्वजनिक स्थानों पर फिर से मास्क पहनने को अनिवार्य किया जा सकता है। खासतौर पर उन लोगों के लिए जिनमें कोरोना के लक्षण हैं ऐसे में भारत के अंदर भी संक्रमण के बढ़ने का खतरा बढ़ गया है। दुनियाभर में बढ़ रहे मामलों को देखते हुए केंद्र सरकार हरकत में आ गई है। बताया जाता है कि अगले कुछ दिनों में सरकार फिर से कुछ नियमों को लागू कर सकती है कोविड-19 संक्रमण की वजह बनने वाला कोरोना वायरस 2020 से अभी तक कई बार म्यूटेट हो चुका है। हर नए वेरिएंट ने पुराने वेरिएंट को पीछे छोड़ा और कम से कम साल भी लोगों को अपना शिकार बनायाI 


इससे पहले अमेरिका के भी एक हेल्थ रिसर्च इंस्टीट्यूट ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि अगले साल चीन में कोरोना से 10 लाख लोग मारे जा सकते हैं,इसे समझने के लिए हमने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अफसर से बात की। उन्होंने कहा, 'कोरोना की हर परिस्थिति से निपटने के लिए अभी हम तैयार हैं। भारत में अभी ज्यादा खतरा नहीं है, लेकिन फिर भी ऐहतियातन हमें हर तरह की सावधानी बरतनी चाहिए। इसी को देखते हुए हम कोविड प्रोटोकॉल को फिर से लागू करने पर विचार कर रहे हैं

 

लेटेस्ट डाटा के मुताबिक, यह नया लक्षण अब इस वायरस का 10वां सबसे आम लक्षण है। गले में खराश इस वक्त सबसे ज़्यादा रिपोर्ट किया गया लक्षण है, जिसके बाद नाक बहना, नाक बंद होना, छींक, सूखी खांसी, सिर दर्द, बलगम वाली खांसी, कर्कश आवाज़, मांसपेशियों में दर्द और दर्द इस लिस्ट में शामिल हैं।



अब तक 23 करोड़ से ज्यादा लोगों को कोरोना वैक्सीन का बूस्टर डोज लगाया जा चुका है। इस बीच भारत में भी कोरोना की नई लहर आने का खतरा बढ़ गया है. मंगलवार को केंद्र सरकार ने सभी राज्यों से कहा है कि सभी पॉजिटिव मामलों की जीनोम सिक्वेंसिंग करें करें ताकि वैरिएंट को ट्रैक किया जा सके. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया भी आज रिव्यू मीटिंग करने वाले हैं,अब इसकी संख्या तेजी से बढ़ाने पर सरकार फोकस कर रही है। ज्यादा से ज्यादा लोगों को बूस्टर डोज लग सकेे। 


One Nation One Ration Card Apply Online

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 वन नेशन वन राशन कार्ड की योजना पूरे भारत में लागू हो चुकी है जिसका मतलब यही कि कल को दूसरी स्टेट में शिफ्ट हो तो आप अपने पुराने राशन कार्ड का यूज करते हुए आप वहां से भी राशन ले सकते हो । 

अब इसको कैसे खुदी ऑनलाइन अप्लाई कर सकते हो बड़े काम की इन्फॉर्मेशन बता रहा हूँ  

  •  गूगल मे सर्च कीजिए nfsa.gov.in एनएफएसए डॉट जीओवी डॉट इन।

  •  वेबसाइट पर आकर आपको साइन इन रजिस्टर पर क्लिक करना है । 

  • न्यू यूजर पे पर जाकर अपनी एक न्यू आईडी बनानी है ।

  • आईडी बनाकर आप अपने आधार कार्ड से लॉगिन कर सकते हैं उसके बाद आपको कुछ ऐसा इंटरफेस  दिखाई देगा। 


  •  राइट साइड पर यहां पर आओगे तो वहा  कॉमन रजिस्ट्रेशन फैसिलिटी उसका पहला  ऑप्शन  न्यू रजिस्ट्रेशन भी आपको दिखेगा । 


  • जैसी क्लिक करेंगे. उसके बाद आपको अपनी स्टेट सेलेक्ट करनी है । 


  • अब आप से नीचे स्कीम पूछी जाएगी जो कि आपको यहां पर प्रायोरिटी हाउसहोल्ड जिसको हम यहां पर एनएफएसए भी बोलते हैं इसको आपको अपने सिलेक्ट करना है । 


  • बेनिफिशरी में जाकर आपको या पर राशन पर आपको सिलेक्ट करना है। 


  • नीचे आपको अपनी पूरी डिटेल्स डालनी है  जो कि आपकी आधार कार्ड पर हो । 


  • उपयोग आपको अपने एड्रेस मिलकर मैं उसके बाद आपको कोई अपने नियम मेंबर ऐड करना तो भी आप यहां से कर सकते हैं । 


  • सारी डिटेल्स भरने के बाद आपको को  सेव करना  है उसके बाद आपके पास  एप्लीकेशन आईडी आ जाएगी जिसको आप  लिखकर रख सकते हैं रजिस्ट्रेसन  स्टेटस पर पीसी पोर्टल से चेक कर सकते हैं कि आपका फॉर्म वहां पर अप्रूव हो गया वहां पर रिजेक्ट हो गया तो बड़े काम की इन्फॉर्मेशन को अपने सारे दोस्तों फाइमली मे शेयर करना  फॉलो करना मत भूलना। 

नेतृत्व(Leadership)क्या है ,प्रकृति या विशेषताए , विचारधारा

नेतृत्व(leadership)


नेतृत्व लीडर्शिप  

 नेतृत्व वह गतिशील शक्ति  है जो प्रत्येक सामूहिक प्रयास की सफलता के लिए प्राथमिक अवस्यकता है कुशल नेतृत्व के अभाव में कोई भी संस्था या समूह अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने मे सफल नहीं हो सकता है ।  संस्था के अस्तित्व के लिए ही नहीं, बल्कि इसके की भूमिका सर्वोपरि है। इसलिए प्राय: यहाँ तक भी कहा जाता है कि कोई संस्था तभी सफल हो सकती है  जबकि उसका प्रबन्धक अपनी नेतृत्व भूमिका को निभाता है । 


नेतृत्व :अर्थ  एवं परिभाषाएँ नेतृत्व की परिभाषा भी भिन्‍न-भिन्‍न दृष्टिकोणों से की गई है। व्यवहारवादी प्रबन्धशास्त्रियों ने नेतृत्व को दूसरों को प्रभावित करने की प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया है, जबकि अन्य प्रबंधशास्त्रियों  ने इसे उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु मार्गदर्शन करने की कला या गुण के रूप में परिभासित किया है। नेतृत्व की कुछेक विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषाएँ यहाँ दी जा रही हैं। 

  • कीथ डेविस के अनुसार, नेतृत्व दूसरे व्यक्तियों को पुर्व-निर्धारित उदेश्यों को उत्साहपुर्वक प्राप्त करने के लिए प्रेरित करने की योग्यता हैं। यह वह मानवीय तत्व है जो  एक समूह को एक सूत्र में बाँधे रखता है और इसे लक्ष्य की ओर अभिप्रेरित  करता है। 
  • लिविंग्सटान के अनुसार ,नेतृत्व अन्य लोगों मे किसी  सामान्य उद्देस्य का अनुसरण करने की इच्छा जागृत करने की योग्यता है । 
  •  बर्नार्ड  के अनुसार, नेतृत्व से तात्पर्य किन्हीं व्यक्तियों के व्यवहार का वह गुण है जिसके द्वारा सामुहिक प्रयास में लोगों या उनकी क्रियाओं का सार्यदर्शन करते हैं। 
  •  रॉबर्ट अलबानींज के अनुसार, श्रबन्धकीय नेतृत्व वह व्यवहार हैं जो स्वैच्छिक अनुयामी व्यवहार उत्पन्न करता है जो कार्य निष्पादन की न्यूनतम आवश्यकता के अतिरिक्त पाया जाता है । 
  • कूंज तथा ऑडॉनेल के शब्दों में "नेतृत्व लक्ष्य प्राप्ति हेतू परस्पर प्रभाव डालने की योग्यता है। 
  • टीड के अनुसार, नेतृत्व गुर्णों का वह संयोजन है जिनके होने से कोई भी व्यक्ति अन्य व्यक्तियों से कुछ करवाने के योग्य होता है. क्योंकि वे उसकें प्रभाव से हीं कार्य करने के लिए तत्पर होते हैं।  
  •  टैरी तथा फ्रेंकलिन के अनुसार, निठ्ृत्व वह सम्बन्ध है अन्तर्गत एक व्यक्ति निंत दूसरों को समूह अथवा तथा नेता द्वारा इक्तित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए स्वेच्छापूर्वक सम्बन्धित क्रियाओं में साथ कार्य करने के लिए प्रभावित करता है।
  • अल्फ्रेड तथा बींटी के अनुसार, नेतृत्व वह गुण है जिसके द्वारा अनुयायियों के समूह से डइच्तित कार्य स्वेच्छापूर्क अथवा बिना किसी दबाव के करवायें जाते हैं। 
 इस प्रकार स्पष्ट है कि प्रबन्धकीय नेतृत्व एक व्यावहारिक गुणा या व्यवहार है । जिसके द्वारा एक  व्यक्ति दूसरे व्यक्तियों को स्वेच्छा से अपनी संस्था के उद्देश्यों को  प्रार्थी हेतु कार्य करने के लिए मार्गदर्शन एवं प्रेरणा देता है। नेता अपने व्यवहार से अपने अनुयाईओ को इस प्रकार प्रभावित करता है जिससे वे अपने  कार्य की न्यूनतम आवश्यकताओं से भी अधिक स्वेच्छा पूर्वक कार्य करने  को तत्पर होते हैं। नेतृत्व दूसरों को प्रभावित करने तथा दूसरों के साथ व्यवहार करने का कार्य है।   यह आपसी व्यवहार की वह कला है, जिससे उद्देश्यों की प्राप्ति मे अन्य लोगों का सहयोग  प्राप्त किया जाता है। 




नेतृत्व की प्रकृति या विशेषताएँ 
विशेषताओं नेतृत्व की प्रकृति को भली प्रकार से समझने के लिए इसकी कुछेक दी विशेषताओं का विश्लेषण करना आवश्यक है। इसकी कुछेक प्रमुख विशेषताएँ अग्रानुसार है :

1.व्यक्तिगत गुण : नेतृत्व की प्रथम विशेषता यह है कि यह एक व्यक्तिगत गुण है । यह नेता का  भौतिक गुण नहीं है, बल्कि यह व्यावहारिक गुण है जिससे व दूसरे व्याकटीओ को प्रभवित  करता है अथवा उनका मार्गदर्शन करता है। बर्नार्ड  ने भी इसीलिए लिखा है नेतृत्व किसी  व्यक्ति के व्यवहार का वह गुण है जिसके द्वारा वह अन्य लोगों का मार्गदर्शन करता है  कूंज तथा ओ'डोनेल ने भी इसे लोगों को प्रभावित करने की योग्यता ही कहा है। 

2.नेतृत्व कार्य करने पर निर्भर  है : नेतृत्व एक गुण है, किन्तु जब तक इस गुण को उपयोग में नहीं लाया जाता है, तब तक नेतृत्व के गुण का कोई लाभ नहीं होत है। 

3. नेतृत्व क्षमता विकसित एवं प्राप्त की जाती है : कुछ भ्रांतिया ऐसी भी रही है की नेता पैदा होते हैं, बनाये नहीं जाते।' किन्तु, आज इस धारणा का कोई महत्व नहीं है । अब नेतृत्व  क्षमता को व्यवस्थित किया जाता है। लोग स्वतः भी नेतृत्व क्षमता का विकास कर लेते हैं। प्रो. रोस तथा हैंड्री  ने ठीक ही लिखा है कि नेतृत्व क्षमता जन्म लेती है विकसित होती है तथा इसे प्राप्त किया जा सकता है।' 

4. अनुयायी : प्रत्येक सिक्के का दूसरा पहलू भी होता है। इसी प्रकार नेतृत्व का दूसरा पहलू उसके अनुयायी हैं। अनुयायियों के बिना नेतृत्व नहीं किया जा सकता है। अत: नेतृत्व के लिए अनुयायियों का समूह अवश्य होना चाहिए! 
5. आपसी सम्बन्धों पर आधारित : नेतृत्व आपसी सम्बन्धों की स्थिति में ही जन्म लेता है तथा विकसित होता है। ये आपसी सम्बन्ध अनुयायियों तथा नेता के बीच होने आवश्यक हैं | 

6. प्रमावित करने या मार्गदर्शन करने की कला : नेतृत्व अन्य लोगों को प्रभावित करने या मार्गदर्शन करने की कला है। नेता इस कला के द्वारा अपने अनुयायियों या अधीनस्थों को इस प्रकार प्रभावित करता है या उनका मार्गदर्शन करता है कि वे स्वेच्छा से नेता की इच्छाओं के अनुरूप कार्य करने के लिए तत्पर हो जाते हैं। 

7. सामूहिक हित या हितों की एकता : नेतृत्व की एक विशेषता यह है कि इसके उद्देश्यों मे संगठन, नेता तथा अनुयायियों- तीनों के ही हित निहित हैं। कुशल नेतृत्व तीनों के ही हितों की ; पूर्ति के लिए प्रयास करता है। टेरी ने ठीक ही कहा है कि “नेतृत्व पारस्परिक लक्ष्यों हितों की पूर्ति हेतु लोगों को स्वैच्डिक प्रयास करने की प्रेरणा देता है संक्षेप में नेतृत्व की सफलता के  लिए तीनों के ही हितों में एकता तथा उनकी पूर्ति होना परमावश्यक है। 

8. गतिशील प्रक्रिया : नेतृत्व एक गतिशील प्रक्रिया है, जो निरंतर रूप से चलती रहती है । जब तक व्यक्तियों का समूह या संगठन विद्यमान रहता है, तब तक नेतृत्व की भी प्रक्रिया चलती रहती है । 

9.गतिशील शक्ति या कला : नेतृत्व एक गतिशील शक्ति या कला है जो समय एवं  परिस्थितियों के अनुरूप उपयोग में लायी जाती है। दूसरे  शब्दों मे नेतृत्व के सभी तरीकों  विधियाँ, शैलियों को सभी परिस्थितियों में समान रूप से लागू नहीं किया जाता हैं, समय तथा परिस्थितियों के अनुरूप चातुर्य का उपयोग करते हुए नेतृत्व प्रणाली या शैली का उपयोग किया जा सकता है।

 10. अनुकरणीय आचरण:  नेतृत्व की सफलता मे नेता का आचरण एसा  होना चाहिए जिसे उसके अनुयाई अपना सके । 
11. औपचारिक एवं अनौपचारिक : नेतृत्व की एक विशेषता यह भी है कि यह औपचारिक एवं अनोपचारिक- दोनों ही रूपों में पाया जाता है। संस्था का प्रबन्धक औपचारिक नेता तो हो सकता है, किन्तु वह कभी-कभी अनौपचारिक रूप में भी अपने समूह या अधीनस्थों का नेतृत्व करता है। 

12. लक्ष्य प्रधान :ननेतृत्व लक्ष्य प्रधान होता है प्रत्येक नेता सामूहिक एवं व्यक्तिगत उद्देश्यो की प्राप्ति के लिए ही अपने अनुयाइयों या अधीनस्थों के व्यवहार को प्रभावित करता है और उनका मार्गदर्शन करता है ।     

 13. सभी प्रबन्धक नेता नहीं होते : नेतृत्व की अन्तिम किन्तु सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि सभी प्रबन्धक नेता नहीं होते हैं। दूसरे शब्दों में, नेतृत्व एवं प्रबन्ध में अन्तर होता है। प्रबन्धक दूसरों से कार्य करवाता है, जिसके लिए उसके पास औपचारिक अधिकार होते हैं, जबकि नेता नेतृत्व के द्वारा लोगों को स्वेच्छा से कार्य करने के लिए प्रेरित या प्रभावित करता है। 
14. सकारात्मक एवं नकारात्मक : नेतृत्व सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों ही प्रकार का हो सकता है। 




नेतृत्व की विचारधाराएँ

नेतृत्व की अनेक विचारधाराएँ प्रचलित हो चुकी हैं । प्रमुख विचारधाराएँ निम्नानुसार हैं : 
1 . गुणमूलक विचारधारा; 
2. व्यावहारिक विचारधारा; 
3. परिस्थितिमूलक विचाधारा; तथा
4. अनुयायी कल्याण विचारधारा |

1 .गुणमूलक विचारधारा 
नेतृत्व की सबसे प्राचीन विचारधारा गुणमूलक विचारधारा है। इस विचारधारा को प्रतिपादित करने का श्रेय चेस्टर आई बर्नार्ड , ओर्डवे टीड आदि की दिया जाता है। इन्होंने विश्व के अनेक सुप्रसिद्ध नेताओं के गुणों का अध्ययन करके यह पाया कि सफल नेताओं में कछ विशिष्ट वैयक्तिक गुण या लक्षण पाये जाते हैं। इसी आधार पर इन विद्वानों ने यह निष्कर्ष निकाला कि _ जिन व्यक्तियों में ये विशिष्ट गुण होते हैं, वे एक न एक दिन सफल नेता अवश्य बनते हैं। गुणमूलक विचारधारा इस मान्यता पर आधारित है कि नेता की सफलता उसके कुछ विशिष्ट _व्यक्तिगत गुणों पर निर्भर करती है। जिस व्यक्ति में ये विशिष्ट गुण पाये जाते हैं. वह सफल नेता बन जाए है। इन के अभाव में वह व्यक्ति एक सफल नेता नहीं उन सकता है। विभिन्‍न शोध परिणामों के अनुसार एक सफल नेता मे भिन्न भिन्न गुण पाए जाते है कुछ शोधकर्ताओ के अनुशार  तो गुणों की संख्या दर्जनों में नहीं बल्कि सैकड़ों में ही है। कुछ शोधकर्ताओं ने सफल विद्वानों ने एक नेता में पाये जाने वाले गुणों की सीमित सूची बनायी है ।  नेता के लिए निम्नलिखित गुणा, को आवश्यक माना है” शारीरिक शक्ति एवं स्फूर्ति आत्म-विश्वास, उत्साह, उद्देश्यों के प्रति निष्ठा, निर्णयन क्षमता, तकनीकी योग्यता, निरीक्षण क्षमता, कुशाग्र बुद्धि, तर्क-शक्ति, विश्वसनीयता, सम्प्रेषण क्षमता, इत्यादि । 

प्रारंभ में तो यह माना जाता था कि “नेता में समस्त गुण जन्मदाता होते हैं तथा यह विश्वास किया जाता था कि नेता पैदा होते हैं, बनाये नहीं जाते हैं।' किन्तु, अब यह विश्वास किया जाने लगा है कि नेता के गुण विकसित भी किये जा सकते हैं। ओर्डवे टीड ने लिखा है कि "नेता जन्मते  भी हैं और बनाये शी जाते हैं। जिन व्यक्तियों में नेता के लिए आवश्यक गुण होते हैं या विकसित हो जाते हैं वे अवसर पाते ही स्वतः नेता के रुप में उमर कर सामने आ जाते हैं” समालोचना : नेतृत्व की गुणमूलक विचारधारा के कुछ लाभ या गुण निम्नानुसार हैं : 

1. यह विचारधारा अत्यन्त सरल एवं समझने योग्य है। 
2. यह विचारधारा अच्छे नेता के सभी व्यक्तिगत गुणों (शारीरिक, मानसिक, चारित्रिक एवं व्यावसायिक गुणों) को महत्व देती है। 
3. इन गुगों के आधार पर कहीं पर भी अच्छे नेता (प्रबन्धक) का चुनाव करना आसान हो जाता है। यह विचारधारा नेताओं के प्रशिक्षण के लिए उपयुक्त मार्गदर्शन करती है। 

5. यह विचारधारा नेता के गुणों को ही उसकी सफलता का आधार मानती है, जबकि व्यवहार में नेता की सफलता सम्पूर्ण वातावरण की परिस्थितियों से प्रभावित होती है| 

6. यह विचारधारा नेता के गुणों को ही उसकी सफलता का आधार मानती है, जबकि व्यवहार में नेता की सफलता सम्पूर्ण वातावरण की परिस्थितियों से प्रभावित होती है। 

7.आज तक नेता के किनहीं सामान्य गुणों को एक मत में स्वीकार नहीं किया गया है ।  शोधकर्ताओं नेता में भिन्न-भिन्न गुर्णों के विद्यमान होने की बात कहते हैं। प्रो. जेनिंग्स ने ठीक ही लिखा है कि 'पचास  वर्षों के अध्ययनकाल में  भी  व्यक्तित्व के किन्हीं निश्चित गुणों की खोज  नहीं कीं जा सकीं है जिसके आधार पर नेता तथा अनेता में अन्तर किया जा सके। 

8. इस विचारधारा के समर्थकों द्वारा नेता के कई गुणों को बताया गया है, किन्तु इन गुणों की मात्रा तथा अनुपात को किसी ने नहीं बताया है। जबकि व्यवहार में हम एक को अच्छा, दूसरे कों अधिक अच्छा, तीसरे को श्रेष्ठ नेता कहते हैं। अतः गुणों को तुलनात्मक महत्व न दिये जाने के कारण यह विचारधारा और कमजोर हो जाती है। 

9. इस क विचारधारा की आलोचना इस आधार पर की जाती है कि नेताओं के गुणों को -सहीं मापना कठिन हैं। यद्यपिं व्यक्तित्व के गुणों को मापने के लिए अनेक तरीकों का उपयोग किया जाता है,  या थी , किन्तु उन तरीकों से सही निष्कर्ष प्राप्त करना कठिन होता । 


2. व्यावहारिक या व्यवहारवादी विचारधारा 

व्यावहारिक विचारधारा नेता के व्यवहार अर्थात्‌ कार्यों के विश्लेषण पर आधारित है। यह विचारधारा यह मानती है कि नेता की सफलता केवल नेता के गुणों पर निर्भर नहीं करती है, बल्कि उसके कार्यों एवं व्यवहार पर निर्भर करती है। 

यह विचारधारा यह मानती है कि नेता का कार्य तथा व्यवहार चार तत्वों से प्रभावित होता है। वे है 1. नेता, 2. अनुयायी, 3. लक्ष्य एवं 4. वातावरण। ये चारों तत्व एक-दूसरे को भी प्रभावित करते हैं तथा नेता के व्यवहार को निर्धारित करते हैं। 

प्रन्धक या नेता का एक विशेष प्रकार का व्यवहार या कार्य उसे अच्छा नेता बनाता है, किन्तु उसके विपरीत प्रकार का व्यवहार किसी भी नेता को अस्वीकार करवा देता है। इस दृष्टि से देखा जाये, तो नेतृत्व की क्रियाओं को दो भागों में बांटा जा सकता है- प्रथम, वृत्तिमूलक या क्रियात्मक तथा द्वितीय, दुष्प्रवृत्तिमूलक क्रियाएँ। नेता को ऐसा व्यवहार का कार्य करना पड़ता है जिससे उसके अनुयायी सन्तुष्ट होते हों। अत: अनुयायियों को अभिप्रेरित करना, उनका मनोबल ऊँचा उठाना, उनमें समूह भावना का निर्माण करना, प्रमावकारी संचार व्यवस्था बनाना आदि नेता के वृत्तिमूलक कार्य हैं, जिनसे उसके नेतृत्व का प्रभाव बढ़ता है। 
दूसरी ओर नेता के व्यवहार में जब दुष्प्वृत्तमूलक क्रियाएँ उत्पन्न हो जाती हैं, तो उसके नेतृत्व का प्रभाव भी कम होने लगता है। उदाहरण के लिए, अधीनस्थों या अनुयायियों के विचारों पर ध्यान न देना, मानवीय सम्बन्धों के निर्माण का प्रयास न करना, अपरिपक्व व्यवहार करना तथा | सन्देशों के आदान-प्रदान में लापरवाही बरतना आदि ऐसी ही क्रियाएँ हैं, जिनसे नेता के प्रभाव में कमी आ जाती हैं। अत: नेता को सदव्यवहार ही नहीं करना चाहिये बल्कि अनुयायियों को | स्वीकार्य व्यवहार भी करना चाहिए, तभी उसके नेतृत्व का प्रभाव बढ़ता है। । यह उल्लेखनीय है कि एक नेता अपने अनुयायियों का नेतृत्व करने के लिए मानवीय, तकनीकी एवं सैद्धान्तिक योग्यताओं का उपयोग करता है। मानवीय योग्यता नेता की वह योग्यता | है जिससे वह लोगों के साथ प्रभावकारी ढंग से आपसी सम्बन्ध बनाता है तथा उनमें समूह | भावना का विकास करता है। तकनीकी योग्यता से तात्पर्य व्यक्ति की अपने कार्य के सम्बन्ध में जानकारी से है| सैद्धान्तिक योग्यता वह योग्यता है जिसके द्वारा अपनी कार्यस्थिति को समझता है तथा उसके अनुरूप कार्यों की कल्पना करता है तथा उनकों पूरा करने की योजना बनाता है| व्यावहारिक विचारधारा के आधार पर अब तक अनेक विद्वान शोध कर चुके हैं। इनमें रेनसिस लिकर्ट, स्टोगडिल ब्लेक तथा माउण्टन आदि के नाम उल्लेखनीय हैं । इन सभी विद्वानों ने अपने शोध निष्कर्षों के बाद विभिन्‍न परिस्थितियों में विभिन्‍न प्रकार के नेतृत्वव्यवहारों को अपनाने का सुझाव दिया है । 

उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि गुणात्मक विचारधारा एवं व्यावहारिक विचारधारा के बीच एक आधारभूत अन्तर है। गुणमूलक विचारधारा इस बात पर बल देती है कि नेता की सफलता के लिए उसमें कुछ विशिष्ट गुण होने आवश्यक हैं, जबकि व्यावहारिक विचारधारा यह कहती है कि नेता की सफलता के लिए उसका विशिष्ट प्रकार का व्यवहार होना आवश्यक है | समालोचना : व्यावहारिक विचारधारा का सबसे बड़ा गुण यह हैं कि यह विचारधारा यह मानती है कि नेता का एक विशेष प्रकार का सकारात्मक व्यवहार उसके अनुयायियों को अधिक संतोष प्रदान करता है तथा वह नेता के रूप में स्वीकार कर लिया जाता है। 

किन्तु, इस विचारधारा का दोष भी है। वह यह है कि एक विशेष प्रकार का व्यवहार एक विशेष समय पर प्रभावकारी हो सकता है, किन्तु किसी अन्य समय एवं परिस्थितियों में वह व्यवहार प्रभावकारी हो, यह आवश्यक नहीं है। इस प्रकार की विचारधारा में समय तत्व महत्वपूर्ण होता है, किन्तु इस विचारधारा में इस पर विचार नहीं किया गया है। 



3. परिस्थितिमूलक विचारघारा 
नेतृत्व की परिस्थितिमूलक या परिस्थितिजन्य विचारधारा में नेता के कार्य में वातावरण की परिस्थितियों को महत्व दिया गया है। इस विचारधारा के अनुसार नेता या नेतृत्व की प्रभावशीलता उन परिस्थितियों पर निर्भर करती है, जिनमें नेता कार्य करता है। अत: इस विचारधारा की यह मान्यता है कि नेतृत्व की कोई भी शैली या प्रणाली सदैव सभी परिस्थितियों में उपयुक्त नहीं होती है। यहीं नहीं, नेतृत्व की काई शैली सर्वोत्तम नहीं होती है। अतः प्रत्येक नेता को अपने वातावरण की परिस्थितियों के अनुरूप ही नेतृत्व शैली या प्रणाली चुननी एवं अपनानी चाहिए, तभी वह सफल हो सकता है, अन्यथी नहीं | इस प्रकार स्पष्ट है कि नेतृत्व की सफलता उसकी परिस्थितियों पर निर्भर करती है। ओहियो राज्य विश्वविद्यालय के शोध केन्द्र ने नेतृत्व को प्रभावित करने वाली परिस्थितियों को चार वर्गों में विभक्त किया है। 
  •  सांस्कृतिक वातावरण,
  •  वैयक्तिक मिन्‍नताएँ, 
  •  कार्य भिन्‍नताएँ
  •  संगठनात्मक भिन्‍नताएँ |

  • सांस्कृतिक वातावरण : समाज के विश्वास, मान्यताओं एवं मूल्यों से संस्कृति का निर्माण होता के अतः समाज के लोग इन सांस्कृतिक तत्वों से प्रभावित होकर व्यवहार करते हैं। अतः नेता को इन सांस्कृतिक तत्वों से उत्पन्न वातावरण को ध्यान में रखना पड़ता है, तभी वे अपने अनुयायियों को हद से प्रभावित कर सकते हैं। 
  • वैयक्तिक मिन्‍नताएँ : नेता के अनुयायियों में वैयक्तिक भिन्नता पाई  पायी जाती हैं । 
  • कार्य-भिन्‍नताएँ : प्रत्येक व्यक्ति एक समान कार्य नहीं करता है किसी कार्य में शारीरिक श्रम की आवस्यकता अधिक होती है, तो किसी में मानसिक चातुर्य की आवश्यकता अधिक पड़तीहै  कार्य में मानसिक तनाव अधिक उत्पन्न हो सकता है, तो किसी में कम। 
  • संगठनात्मक भिन्‍नताएँ : व्यवहार में संगठनात्मक या संस्थागत भिन्‍नताएँ भी पायी जाती हैं । आकार, स्वामित्व, उद्देश्यों, क्रियाओं आदि के आधार पर भिन्न-भिन्न प्रकार के संगठन पाये जाते हैं। नेता सभी संगठनों में समान प्रकार की नेतृत्व शैली अपनाकर सफल नहीं हो सकते हैं। ;| इस प्रकार स्पष्ट है कि संस्कृतियों, व्यक्तियों, कार्यों तथा संस्थाओं में भिन्‍नताएँ पायी जाती हैं । फलतः नेता का कार्य वातावरण तथा कार्य परिस्थितियाँ भी एक-समान नहीं होती हैं। अत: नेता को अपनी परिस्थितियों के अनुरूप नेतृत्व शैली अपनानी पड़ती है। 

परिस्थितिमूलक विचारधारा के आधार पर नेतृत्व के अब तक निम्नलिखित प्रमुख मॉडल या प्रतिमान विकसित किये जा चुके हैं | 
  •  फीलडर का सांयोगिक मॉडल 
  •  हाउस का पथ लक्ष्य मॉडल 
  • जीवन चक्र मॉडल 
  • ब्रूम तथा येटन का आदर्श मॉडल 
ये सभी मॉडल नेतृत्व की परिस्थितिमूलक विचारधारा की मान्यताओं के आधार पर विकसित किये गये हैं । समालोचना : नेतृत्व की इस विचारधारा का अपना विशेष महत्व है। इस विचारधारा के कुछ सकारात्मक पहलू या कुछ गुण निम्नानुसार हैं : की
  •  यह विचारधारा वास्तविकता के धरातल पर टिकी है, क्योंकि यहीं विचारधारा यह मानती है कि नेतृत्व की काई भी शैली सर्वश्रेष्ठ नहीं होती है| 
  •  यह विचारधारा परिस्थितियों के विश्लेषण के आधार पर उचित नेतृत्व शैली अपनाने का सुझाव देती है। अतः यह एक नेता को उचित मार्गदर्शन देती है। 
  •  यह विचारधारा नेता के गुणों का मूल्यांकन या मापन करने का साधन प्रस्तुत करती है। 
परंतु इस विचारधारा की कुछ कमियाँ या दोष भी हैं, जो निम्नानुसार हैं : ही ।. इस विचारधारा की सबसे बड़ी कमी यह है कि यह विचारधारा यह नहीं हा है कि एक नेता- जो एक परिस्थिति मैं महत्वपूर्ण है, वह दूसरी परिस्थिति में योग्य होगा अथवा नहीं । 
 यह विचारधारा परिस्थितियों को महत्त्वपूर्ण मानती है। परिस्थितियों के आधार पर नेता की सफलता एवं असफलता को निर्धारित किया जाता है। अतः: नेता की भक्तिगत योग्यता का महत्व गौण हो जाता है। 3. यह विचारधारा प्रभावकारी नेता बनाने या विकसित करने की प्रक्रिया नहीं बताती है| अतः इसका नेतृत्व के विकास में योगदान नहीं मिलता है। 

4 .अनुयायी कल्याण विचारधारा 

यह विचारधारा इस मान्यता पर आधारित है कि अनुयायियों की कुछ आशाएँ तथा अपेक्षाएँ होती हैं। अतः अनुयायी उसे अपना नेता मानते हैं जिससे उन्हें उनकी आशाओं एवं अपेक्षाओं की पूर्ति होती दिखाई देती है। ऐसी स्थिति में वहीं व्यक्ति नेता होता है, जो लोगों की अपेक्षाओं एवं आशाओं की पूर्ति में योगदान देने की क्षमता रखता है। 


सूर्य नमस्कार के कितने आसन होते है?,एवं विधि

 सूर्य नमस्कार 

सूर्य नमस्कार के कुल 12 आसान होते है आइए जानते है उनके नाम और उनकी विधि के बरे मे -


स्थिति-1 -प्राणामासन 

 विधि - दोनों पैरों को एंक साथ रखते हुऐ सीधे खड़े जो जायें, दोनों हथेलियों को छाती के सामने नमस्कार की मुद्रा में जोड़ें। लम्बी गहरी श्साव बाहर छोड़ें। हथेलियों की इस मुद्रा तथा उसके छाती पर पड़ने वाले प्रभाव के प्रति सजगता को बढ़ाये। 

  

 स्थिति-2- हस्त उत्तानासन 

हस्त उत्तानासन

विधि- हथेलियों को बाहर की. ओर रखते हुये भुजाओं को सिर के ऊपर उठायें। पीठ को धनुषाकार बनाते हुये सिर तथा ऊपरी धड़ को आरामदायक स्थिति तक पीछे  की ओर झुकायें । इस स्थिति में आते हुये श्वास अन्दर लेना चाहिए।


  स्थिति-3-पाद हस्तासन 

सूर्य नमस्कार

विधि- सामने की ओर झुकते जायें ज़ब तक कि उंगलियां या हथेलियां पैर के पंजों के बगल में भूमि से पर्श न करने लगें। घुटने से नाक को स्पर्श करने का प्रयास करते रहें लेकिन पैरों को सीधा रखें, अधिक जोर न लगायें। इस स्थिति में आते हुये श्वास बाहर छोड़ें ।


 स्थिति-4-अश्वसंचालनासन 

सूर्य नमस्कार

सूर्य नमस्कार

 विधि- वॉये पैर को यथा सम्भव पीछे फैलायें। दायें घुटने को मोड़ें पंजा अपने स्थान पर ही रहने दें। साथ ही साथ वाँये पैर की अंगुलियां तथा घुटना भूमि से सटाकर रखें। कमर को धनुषाकार बनाते हुये सिर को यथा संभव पीछे की ओर ले जायें। सामने देखें और हाथों की अंगुलियों को जमीन से स्पर्श करने दें। श्वास अन्दर लें जाघों से भूमध्य तक शरीर के अग्र भाग पर पड़ने वाले तनाव के प्रति सजगता को बढ़ाइये | 


स्थिति-5-पर्वतासन 

सूर्य नमस्कार

विधि- दौये पैर को पीछे लाकर वॉयें पैर के बगल में रखें। नितम्वों को ऊपर उठायें और सिर को झुकाते समय भुजाओं के बीच में ले आयें। सिर अधिक से अधिक आगे की ओर झुकायें और घुटनों की ओर देखें। अंतिम स्थिति में पैर तथा भुजाएऐं सीधी रखें। इस स्थिति में एड़ियों को भूमि से स्पर्श करायें। दायें पैर को सीधा करते एवं नितम्बों को उठाते समय श्वास छोड़ें, गर्दन में क्षेत्र पर सजगता को बढ़ायें |


 स्थिति--6-अष्टांग नमस्कार 

सूर्य नमस्कार

 ंविधि- घुटनों को मोड़ते हुये शरीर को भूमि से सटायें अंतिम स्थिति में दोनों पैरों की अंगुलियां, दोनों घुटने, सीना, दोनों हथेलियाँ तथा ठुड्डी भूमि को स्पर्श करना चाहिएऐ। नितम्वों व कमर को भूमि से थोड़ा ऊपर रखें। इस स्थिति में श्वास बाहर रोककर रखें। इसी अभ्यास में सामान्य रूप से चलते हुये श्वास-प्रश्वास के क्रम मे परिवर्तन होता है। शरीर के मध्य भाग पर या पीठ की मॉस पेशियों पर सजगता को बढ़ाये ।


 स्थिति-7-भुजंगासन

स्थिति-7-भुजंगासन

 

विधि- जाघों को भूमि से सटायें तथा सीना आगे ऊपर की ओर लायें। हाथों को सीधा करते हुये शरीर को कमर से ऊपर उठायें तथा सिर को पीछे की ओर ले जायें। इस स्थिति में मेरुदण्ड धनुषाकार बन. जायेगा एवं सिर ऊपर की ओर रहेगा। शरीर को ऊपर उठाते समय तथा मेरुदण्ड को धघनुषाकार बनाते समय श्वास अन्दर लें | मेरुदण्ड के निचले छोर पर पड़ रहे तनाव पर सजगता को बढ़ाये। 


स्थिति-8-पर्वतासन

स्थिति-8-पर्वतासन

 

 विधि- यह स्थिति -5 की पुनरावृत्ति है, नितम्वों को ऊपर उठाते हुये पर्वतासन मे आवे । सिर दोनों भुजाओ के बीच मे लाए, घुटने सीधे रखे अंतिम स्थिति मे पैर तथा भुजाये सीधी रखे एड़ियों को भूमि से स्पर्स कराए तथा स्वास बाहर छोड़े। 


स्थिति 9-अश्वसंचालनासन 

अश्वसंचालनासन

विधि- यह भी स्थिति-4 की पुनरावृत्ति है, दांया पैर आगे ले आयें तथा डक को दोनों हाथों के बीच में रखें वॉया घुटना जमीन से सटा ऊपर की ओर देखें। इस स्थिति में आते समय श्वास अन्दर लें।


स्थिति-10-पादहस्तासन

पादहस्तासन

 

विधि- यह स्थिति-3 की पुनरावृत्ति है, वॉये पैर को दॉये पैर की बगल में ले आयें। पेरों को सीधा रखते हुये आगे की ओर झुकें, सिर को घुटनों के पास लाने का प्रयत्न कर। इस स्थिति में आते समय श्वास बाहर छोड़ें | 


 स्थिति -11- हस्थ उत्तानासन 

हस्थ उत्तानासन

विधि- यह स्थिति-2 की पुनरावृति है, हाथों को सिर के ऊपर ले जाकर पीछे की ओर मुड़ते हुये हस्तउत्तजासन की स्थिति में आयें इस स्थिति में शवास अंदर लें | 


स्थिति-12-नमस्कार मुद्रा प्राणामासन 

 विधि-यह स्थिति भी प्रथम (प्रथम) की पुनरावृति है। नमस्कार की मुद्रा में हाथ  को सीने के सामने मिलाकर सीधे खड़े हो जायें। पूरे शरीर को शिथिल करें। इस स्थिति में लौटते समय श्वास छोड़ें |

जनसम्पर्क(public relation ),अधिकारी ,प्रकृति , महत्व ,साधन ,सम्पादन कला

 

जनसम्पर्क(public  relation )

जनसम्पर्क(public  relation )

जनसम्पर्क दो शब्दों के मेल से बना है, जिसका अर्थ है- आम आदमी से मेल-जोल स्थापित करना। आम आदमी से मतलब उस आदमी से है जो विशिष्ट नहीं है और किसी प्रकार के आडम्बर से मुक्त है | जनसंपर्क का उद्देश्य होता है- जनता से संवाद स्थापित करना और उस संवाद के माध्यम से जनता को नई-नई जानकारी देना और कोशिश करना कि जनता उसे स्वीकार करे, अपने जीवन में उसे अपनाये तथा उसका अनुकरण करे। जनसंपर्क की बहुत सी परिभाषाएँ दी गयी हैं,


 जैसे- आक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी में 'पब्लिक रिलेशंस' का मतलब किसी संगठन या किसी मशहूर व्यक्ति द्वारा जनता में अपनी अच्छी छवि बनाना बताया गया है। जबकि सैम ब्लैक ने अपनी पुस्तक 'प्रैक्टिल पब्लिक रिलेशंस' में बताया है- “जनसंपर्क का मूल उद्देश्य दो पक्षों के बीच सत्य ज्ञान व सम्पूर्ण सुचना पर आधारित समझदारी विकसित करना है” जाहिर है कि दो पक्षों में एक पक्ष कोई सरकारी व्यक्ति हो सकता है, कोई सरकारी- गैरसरकारी या व्यावसायिक प्रतिष्ठान हो सकता है, सरकार या उसका अमला हो सकता है, लिन पक्ष आम आदमी ही है। शायद इसीलिए वेब्सटर की 'न्यु इंटरनेशनल डिक्शनरी' में पर्क की अग्र व्याख्या की गयी है- “किसी संस्था, संगठन, व्यक्ति किशिव जनता या व्यापक अर्थों में भिन्‍न समुदायों के बीच व्याख्या सामग्री द्वारा अंतर्सबंधों का विकास व जनसमुदाय का आकलन कर  संबंधों की प्रोन्नति का नाम जनसंपर्क है।” यानी किसी व्यक्ति, किसी संगठन अथवा किसी संस्थान और जनता के बीच समझदारी और सद्भावना कायम करना ही जनसंपर्क है। आप चाहें, तो इसे परस्पर सद्भावना और समझदारी विकसित करने की कला भी कह सकते हैं और विज्ञान भी | 



जनसंपर्क का महत्व 

जनसंपर्क के महत्व को इसी बात से समझा जा सकता है कि जितनी पुरानी जनता है, उतना ही जनसंपर्क भी । उसके महत्व को समझने के लिए दुनिया के प्रतिष्ठित साहित्य से उदाहरण दिये जा सकते हैं! के.पी. नारायण ने अपनी पुस्तक “संपादन कला' में ऐसे कई उदाहरण दिये हैं । पहला उदाहरण, विलियम शेक्सपीयर के सिर से दिया है कि जब ब्रूट्स ने उद्घोषित किया कि सीजर की हल कारण बताये जायेंगे और लोगों से अभ्यर्थना की कि रोमवासियों, देशवासियों, प्रेमियों, मेरी बात सुनो, तो वह जनसंपर्क ही साध रहा था। जब एंटनी ने उद्घोषणा की कि साथियों, रोमवासियों, देशवासियों मेरी बात सुनो, तो वह सुन्दर ढंग से जनसंपर्क साध रहा था। दूसरा उदाहरण उन्होंने 'कृष्ण कथा' से दिया है कि जब भगवान कृष्ण पर स्यमंत कमणि चुराने का आरोप लगाया गया और वे खोयी हुई मणि की खोज में निकल पड़े और अंत में जब मणि प्राप्त हो गयी, तब उन्होंने जनसंपर्क का भव्य कार्य किया था। इस कार्य में उन्हें स्यमंतक मणि अपने स्वयं के लिए मिल गई और जामवीत और सत्यभामा जैसी सुंदरियाँ मिल गरयीं। इससे है कि यदि उचित रीति से जनसंपर्क किया जाए, तो जिस काम के लिए प्रयास  किया जाता है, उसमें सफलता अवश्य मिलती है। 


तीसरा उदाहरण 'राम कथा ' से देते ध है कि जब भगवान रामचन्द्र ने बताया   कि उन्होंने बालि का वध क्यों किया और सुग्रीव ' के साथ जो उन्होंने संधि की थी ,उसका स्वरूप क्या था , तो वे इस संघि के संबंध में    जनसंपर्क ही कर रहे थे। सभाओं, प्रवचनों तथा की दौडी यात्रा' भी एक तरह को जनसंपर्क ही व और सत्कर्म हेतु प्रेरणा  यात्राओं के दौरान जन सामान्य से मिलना, उन्हें में जागे विश्वास' के ध्यय से चर उसी का हिस्सा था। भारत यात्रा एक प्रयास : हू णों के आधार पर कहा जा सकता है दस अभियान जनसंपर्क ही तो हैं।


 जनसम्पर्क  की प्रकृति 

यह तय कर पाना कठिन है की  जनसंपर्क कला है या विज्ञान । कुछ विसेसज्ञों का कहना है की यह विज्ञान है । जबकि कुछ विसेसज्ञ इसे कला इस लिए मानते हैं क्योंकि अपने संस्थान की छवि को निखारने के लिए वह व्यवहारिक प्रयोगों का  सहारा लेता है।  ऐसे विशेषज्ञों का कहना है कि सैद्धांतिक रूप से जनसंपर्क भले ही कला हो, लेकिन व्यावहारिक रूप से विज्ञान ही है । ए.आर. रालमैन तो इस बहस को एक नये दृष्टिकोण से देखते हैं और विज्ञान की जगह वे इसे सेवा कहना ज्यादा बेहतर समझते हैं। उन्होंने कहा की जनसंपर्क सेवा व कला है, जिसे कंपनी के व्यापारिक हितों व आवश्यकता के अनुसार ढाला जाना चाहिए। कृष्ण कुमार मालवीय ने 'आधुनिक जनसंपर्क' में प्रकृति की चर्चा करते हुए लिखा है कि जनसंपर्क की गतिविधियों द्वारा राज्य व केन्द्रीय सरकारें, ग्राम पंचायत, स्थानीय निकाय, राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक विभिन्‍न सामयिंक मुद्दों पर जनता का समर्थन एवं विश्वास अर्जित करने का प्रयास करती है। जनसंपर्क की प्रकृति से ही जनसंपर्क के स्वरूप के समस्त गुणों का निर्धारण होता है। लोकहित, समाजहित, राष्ट्रहित एवं लोकाचार की सर्वागिकता के साथ मानव स्वभाव को संवेगात्मक रूप से अभिभूत कर उनका दृष्टिकोण अपने पक्ष में परिवर्तित करना जनसंपर्क की प्रकृति में समाविष्ट है। 


यह बात बिल्कुल सही है कि जन संचार माध्यमों के जरिए जनता सब पर नजर रखती है, लेकिन जनता की नजर टेढ़ी नं हो इस बात पर नजर रखना "जनसंपर्क' की प्रकृति में शामिल है। किसी संगठन का समग्र हित जनता के नजरिए पर निर्भर है। यों तो "जनसंपर्क' की प्रकृति, _ स्वरूप और उसकी अवधारणा को परिभाषित करना अपने आप में दुष्कर है, जैसाकि नारमैन स्टोन ने कहा भी है कि जनसंपर्क के वास्तविक स्वरूप को जानना जटिल है, क्योंकि इसमें बहुत मिन्‍्नताएँ हैं। बावजूद इसके वह जनसंपर्क के उद्देश्यों को स्पष्ट मानता है। वह कहता है कि रा | कोई श्रम नहीं है, उसके उद्देश्य स्पष्ट हैं। जहाँ तक नैतिक मूल्यों का प्रश्न है, तो जनसंपर्क प्रकृति में नैतिक मूल्यों के महत्व को भी स्वीकार किया गया है। कहने का मतलब  यह कि संचार मे ईमानदारी व गंभीरता के साथ तथ्यों की सत्यता का होना भी अनिवॉर्य है, सिफ सदाचरण ही पर्याप्त नहीं। जनसंपर्क की गतिविधियाँ ऐसी हों जिनसे जनता का ध्यान आकर्षित  हो, ताकि उसका परिणाम संगठन के हित में हो | 


जनसपंर्क अधिकारी 

प्रायः हर बड़े संगठन में जनसंपर्क अधिकारी नाम का एक पद होता है। यदि संगठन बहुत बड़ा हुआ, तो जनसंपर्क कार्यालय नाम से पूरा का पूरा एक हाईटेक दफ्तर ही होता है. जिसमें एक प्रमुख जनसंपर्क अधिकारी होता है और कई सहायक भी हो सकते हैं। इनका अपना अलग वेतनमान होता है। प्रायः हर विभाग में बाकायदा इनकी रिक्तियाँ आती हैं। प्रतियोगितात्मक परीक्षा और फिर साक्षात्कार के जरिए इनका चयन होता है। इन पर भी वह सेवा शर्ते लागू होती हैं, जो अन्य प्रशासनिक अधिकारियों पर होती हैं। यह बात सही है कि हँसते-मुस्कराते सुन्दर चेहरों को पेश कर स्वागत करना ही जनसंपर्क है, लेकिन बदलते जमाने के साथ रिसेप्शनिस्ट और जनसंपर्क अधिकारी' में अंतर तो होना ही चाहिए। एक पेशेवर पीआरओ की छवि अब केवल मुस्काने वाले मेजबान की ही नहीं रह गयी है बल्कि निरन्तर जटिल होती व्यावसायिक दुनिया में उसकी छवि एक जिम्मेदार व सोफिस्टिकेटेड के रूप में होने लगी है। आज जैसे जनसंपर्क के लिए जनसूचना, निवेश संपर्क, कर्मचारी संपर्क, मार्केटिंग उत्पाद प्रचार, लोकहित मामले, विशेषज्ञों ग्राहक सेवा संपर्क तथा कॉर्पोरेट कम्युनिकेशन आदि नाम दिये जाने लगे हैं, उसी तरह पीआरओ को अब “स्पिन डॉक्टर्स' कहा जाने लगा है, क्योंकि अब संगठन के सभी स्तरों के व्यक्तियों से निरन्तर संपर्क में रहने के कारण पीआरओ की भूमिका केन्द्रीय मानी जाने लगी है। 


जनसंपर्क अधिकारी के गुण 

  • सकारात्मक : जनसंपक अधिकारी की सोच हमेशा सकारात्मक होना चाहिए। उसमें ऐसे गुण होने चाहिए कि उससे मिलने के बाद हर आगंतुक को यह लगने लगे कि जिस कार्य से वह आया हैं, वह जरूर होगा। सामने वाला कितना ही झुँझलाया हो, क्रोधित हो या चिड़चिड़ा हो उसकी बात धैर्यपूर्वक सुनना चाहिए और अत्यन्त विनम्रता के साथ पेश आना चाहिए। प्रबंधन के किसी निर्णय से कर्मचारियों में यदि क्षोभ  उत्पन्न हो, तो उन्हें समझा-बुझाकर हर हाल में टकराव  को टाला जाना चाहिए। प्रबन्ध तंत्र को असंतोष के मुद्दों से वाकिफ कराकर, जो भी कर्मचारियों के हित में हो, वैसा निर्णय कराने की कला में माहिर होना चाहिए । 


  •  मीडिया प्रबंधन : मीडियाकर्मियों के साथ जनसंपर्क अधिकारी का संबंध बहुत प्रगाढ़ एवं व्यक्तिमत होना चाहिए। उन्हें कोई भी सूचना देते समय न तो तथ्यों को छिपाना चाहिए और न ही बढ़ा-चढ़ाकर ही कोई बात करनी चाहिए। अपने फेवर में करने के लिए मीडियाकर्मियों को तो कोई प्रलोभन देना चाहिए, न ही उन्हें पथभ्रष्ट करना चाहिए। मीडियाकर्मियों के साथ-साथ विज्ञापन एजेंसियों से भी उनके रिश्ते मधुर होने चाहिए । 
  •  संगठन का विस्तृत ज्ञान : जनसंपर्क अधिकारी को अपने संगठन की राई-रत्ती की खबर रखनी चाहिए। मसलन, संगठन का इतिहास, उसकी संरचना उसका स्वरूप उसके प्रशासनिक एवं कार्मिक तंत्र: उसकी मौजूदा स्थिति, भावी योजनाएँ, उसकी आर्थिक स्थिति आदि का पूरा ब्यौरा उसके दिमाग में होना चाहिए। हर संगठन से भी  यह उम्मीद की जानी  चाहिए कि उसकी छोटी से छोटीऔर बड़ी से बड़ी सभी जानकारियाँ जनसंपर्क के कार्यालय मे पहुँच जानी चाहिए। जनसंपर्क कार्यालय संगठन से वेल कनेक्टेड होना चाहिए सेताकि जरूरत  पड़ने पर कीसी  से कोई सूचना ले सके। 

  •  इंमानदार : जनसंपर्क अधिकारी को उच्च नैतिक मूल्यों का पक्षधर होना चाहिए कर दी गई कोई सूचना, विचार या दस्तावेज तथ्यों पर आधारित होना चाहिए। लार्ड ज नो ने कहा है कि एक मनुष्य को ईमानदार होना चाहिए। उसे किसी चीज की सत्यता प्रमाणित करने के पह उचित जाँच-पड़ताल भी करनी चाहिए। 

  • नियम-कानून का ज्ञान : जनसंपर्क अधिकारी को कम्पनी की कार्यप्रणाली से संबंधित कंपनीज़ एक्ट 1956 और कंडक्ट डिसिप्लिन ऐंड अपील-रूल्स आदि की पूरी जानकारी होनी चाहिए। यदि वह किसी व्यावसायिक प्रतिष्ठान से इतर किसी अन्य प्रशासनिक संगठन का जनसंपर्क अधिकारी है, तो उसे उस संगठन विशेष नियमों, परिनियमों की पूर्ण जानकारी होनी चाहिए । 

  •  संतुलित एवं दृढ़प्रतिज्ञ : जनसंपर्क अधिकारी का व्यक्तित्व संतुलित होना चाहिए। संतुलित से तात्पर्य हर निर्णय के पीछे तार्किक दृष्टिकोण से है। एक बार निर्णय ले ले, उस पर उसे दृढ़ हा चाहिए। लेकिन दृढ़ भी वह तभी होगा, जब खूब विचारकर तार्किक आधार पर निर्णय लेगा । 

  •  गोपनीयता एवं सतर्कता : जनसंपर्क अधिकारी को प्रबन्ध तंत्र की ओर से बहुत से गोपनीय दायित्व व दिशा निर्देश दिये जाते हैं, जो अत्यन्त जटिल एवं संवेदनशील मुद्दों के अलावा विशेष अभियानों से संबंधित होते हैं। इनकी गोपनीयता भंग न होने पाये, इसका ध्यान रखते हुए उसे प्रबन्ध तंत्रों के आदेशों का पालन करना चाहिए। इस विशेष गुण के अलावा जनसंपर्क अधिकारी को संगठन के उद्देश्यों व लक्ष्यों के प्रति सदैव सतर्क रहना चाहिए । जनता, मीडिया, आलोचकों, विरोधियों और प्रतिस्पर्द्धियों की हर चाल की खबर रखना और अपने प्रबन्ध तंत्र को हर परिस्थितियों से निपटने के लिए सतर्क करने रहना चाहिए। 
  •  निपुण एवं दूरदर्शी : 'निपुणता' जनसंपर्क अधिकारी का अनिवार्य गुण है, क्योंकि उसके जिम्में संगठन की छवि निर्माण का काम, जनता से संपर्क, मीडिया से संबंध, अतिथियों का सत्कार, हाउस जर्नल का संपादन तथा जिला प्रशासन से जुड़े कई तरह के काम होतें हैं और इन सभी कामों में यदि अपने प्रबन्ध तंत्र के हित एवं विकास के लिए अभियान चलाने, योजनाओं एवं नीतियों को अमली जामा पहनाने के मामले में दूरदर्शी तो होना ही चाहिए, व्यावहारिक भी होना चाहिए ।
  • आतिथ्य सत्कार : एक अच्छे जनसंपर्क अधिकारी का यह बुनियादी गुण है कि वह अपने अतिथियों का स्वागत-सत्कार करने वाला हो। उनकी बातें विनम्रता, शालीनता और ध्यानपूर्वक सुनता हो । अतिथियों को यह नहीं लगना चाहिए कि वह उनके प्रति उदासीन है, अनासक्त है या सिर्फ अपने मतलब कीं ही बात कर रहा है। ऐसा नहीं है कि ऐसा व्यवहार वह केवल अतिथियों के साथ हीं करता है, बल्कि ऐसे आगन्तुक के साथ उसका व्यवहार उतना ही मधुर होना चाहिए । 


  • प्रत्युत्पन्नमति वाला : जनसंपर्क अधिकारी प्रत्युत्पन्नमति वाला व्यक्ति होना चाहिए, क्योंकि संभव है उसके सामने ऐसी विषम परिस्थितियाँ आ जाएँ जिनमें वह अपने को घिरा हुआ महसूस करे। लेकिन ऐसी परिस्थितियों में उसकी हाजिर जवाबी ही उसे बचा सकती है, बशर्ते अपनी मेधा के इस्तेमाल के साथ वह संयमशील बना रहे तथा हँसी-मजाब के साथ ऐसा उत्तर दे कि सवाल करने वाला भी उसका कायल हो जाए। दरअसल, लोकमत का निर्माण करने में जनसंपर्क अधिकारी की सबसे अहम भूमिका होती हैं, इसलिए प्रबन्ध तंत्र की अच्छी छवि पर आँच न आए, इसका उसे सदैव ध्यान रखना चाहिए 


  • 4. बहिर्मुखी व्यक्तित्व : बिना बहिर्मुखी व्यक्तित्व के कोई भी जनसंपर्क अधिकारी अपने लक्ष्य में सफल नहीं हो सकता। गुमसुम बैठने वाले दार्शनिक मिजाज के व्यक्ति के लए यह पद ही नहीं, क्योंकि उसे हँसमुख तो होना ही चाहिए। आगे बढ़कर लोक-संपर्क करने वाला भी होना चाहिए। जिस भी संगठन से वह जुड़ा हो, उसकी नीतियों, उसके कार्यक्रमों और अभियानों के प्रचार-प्रसार की जिम्मेदारी उसके ऊपर होती है। इसलिए उसे बहुत सक्रिय होना चाहिए। 
  • . बहुमुखी प्रतिभा : जनसंपर्क अधिकारी को क्योंकि हाउस जर्नल का संपादन करना पड़ता है, इसलिए उसमें एक कुशल लेखक, कुशल संपादक के तो गुण होने ही चाहिए, उसे समाचार बनाने, रिपोर्टिंग करने, विज्ञापन तैयार करने की कला भी आनी चाहिए। किसी भी संगठन के अन्दर समय-समय पर सांस्कृतिक, शैक्षिक, साहित्यिक कार्यक्रम तो आयोजित किये ही जाते हैं, राष्ट्रीय पर्वों के अलावा युग पुरुषों के जन्मदिन वगैरह भी मनाये जाते हैं। इन कार्यक्रमों के सफल आयोजन एवं संचालन का गुण भी जनसंपर्क अधिकारी में होना चाहिए। यदि वह कुशल वक्ता नहीं है, तो इन कार्यक्रमों का संचालन भी शायद ही कर पाये। यानी कि हर जनसंपर्क अधिकारी को बहुमुखी प्रतिभा का धनी होना चाहिए । 
जनसंपर्क के साधन 
जनसपंक के निम्न साधन हैं : 
    • 1. परंपरागत माध्यम : लोकगीत, लोकनृत्य, लोककथा, नाटक, कठपुतली, रामलीला, रासलीला आदि। 
    • 2. मुद्रित माध्यम : समाचार पत्र व पत्रिकाएँ आदि। 
    • 3. इलैक्ट्रॉनिक माध्यम : रेडियो, टी.वी.. फिल्म एवं अन्य दृश्य-श्रव्य साधन | 
    • 4. जनसंपर्क अधिकारी : जनसंपर्क अधिकारी स्वयं एक माध्यम है, जो अपने संगठन या संस्था के उद्देश्यों, कार्यक्रमों एवं अभियानों कीं जानकारी जनता तक पहुँचाता है। 
    • 5. मौखिक माध्यम : सभाएँ, वार्तालाप, उद्बोधन एवं व्यक्तिगत संपर्क । 
    • 6. प्रेस-विज्ञप्ति : विभिन्‍न संस्थाओं, संगठनों व राजनीतिक दलों द्वारा अपने कार्यक्रमों, उद्देश्यों, नीतियों और गतिविधियों की जानकारी देने के लिए प्रेस को जो सूचना जारी की जाती है, उसे प्रेस नोट या विज्ञप्ति कहते हैं । 
    • 7. पत्रकार सम्मेलन : विभिन्‍न राजनीतिक दलों, संगठनों नेताओं, मंत्रियों तथा उच्च अधिकारियों द्वारा नवीनतम घटनाक्रमों की जानकारी देने के लिए पत्रकारों को एक निश्चित स्थान पर आमंत्रित किया जाता है, उसे 'पत्रकार-सम्मेलन' या 'प्रेस मीट' कहा जाता है।
    • 8 विज्ञापन : अपने संगठन या अधिष्ठान के उत्पादों के प्रचार के लिए विभिन्‍न प्रकार की डिजाइनों, क। पोस्टरों, होर्डिग्स आदि का इस्तेमाल। अपने विज्ञापन के लिए कुछ संगठन उपहार स्वरूप ; डायरी, पेन, प्रिंड शर्ट और कैप आदि का भी इस्तेमाल करते हैं। 
    • 9 प्रयोजन  : बहुत से संगठन राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रमों का प्रायोजन करते : जैसे- क्िक्रेट विश्वकप, रिलायंस ग्रुप, आई टी सी संगीत सम्मेलन 
    • 10. प्रदर्शनियाँ : अपने उत्पादों के प्रचार-प्रसार के लिए कितनी ही कंपनियाँ कई तरह की प्रदर्शनियों का आयोजन करती हैं, जैसे- फोटो प्रदर्शनी, उत्पाद प्रदर्शनी, ट्रेड फेयर तथा विविध उत्सवों, त्योहारों, पर्वों एवं समारोहों के अवसर पर प्रचार बेनरों का प्रदर्शन आदि | 
    • 11. गूह पत्रिका : उपरिउक्त सभी माध्यमों के अलावा प्रायः हर औद्योगिक प्रतिष्ठान, व्यापारिक संस्थान या संगठन अपने सदस्यों, कर्मचारियों और ग्राहकों के हित में अपनी स्वयं की एक पत्रिका प्रकाशित करते हैं, जिसे गृहपत्रिका कहते हैं। निश्चय ही ऐसी पत्रिकाओं का प्रकाशन आर्थिक लाभ की दृष्टि से न करके सौमनस्य स्थापित करते के लिए ही किया जाता हैं। टाटा, दा मोदी आदि के प्रतिष्ठानों, जीवन बीमा निगम और खाद्य निगम द्वारा प्रकाशित पत्रिकाएँ इसी कोटि में आती हैं। 


      सम्पादन कला 
      प्रिन्ट मीडिया 
      प्रिन्ट मीडिया के तहत समाचार पत्र, पत्रिकाएँ, जर्नल, पुस्तकें और पोस्टर आदि सब कुछ आते हैं और इनमें सबकी सम्पादन कला की अपनी अलग-अलग विशेषताएँ होती हैं, लेकिन शैलीगत भिन्‍नताओं के बावजूद तथ्यात्मकता, भाषा और व्याकरण की शुद्ध एवं विश्वसनीयता इस माध्यम की खासियतों में शामिल है। इनके प्रस्तुतीकरण में भले अन्तर हो, लेकिन जनता में अन्य संचार माध्यमों की तुलना में इनकी प्रामाणिकता ज्यादा है, इनमें स्थायित्व ज्यादा है। समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में जहाँ समाचारों और समाचार कथाओं की बहुलता होती है, वहीं साहित्यिक पत्र एवं पत्रिंकाओं में कविताएँ, कहानियाँ एवं लेख होते हैं, पुस्तकों का इतना विस्तार है कि जितने विषय हैं, उतनी पुस्तकें हैं, यानी विषयवार पुस्तकों के सम्पादन की योग्यताएँ भी अलग-अलग हैं। पेंपलेट और पोस्टर तैयार करने वालों में अलग तरह की योग्यताएँ होती हैं और उनके सम्पादन से जुड़े लोग भी पत्र-पत्रिकाओं या पुस्तकों के लोखकों या सम्पादकों से भिन्न योग्यता रखते हैं। यह जरूरी नहीं कि जो अच्छा लेखक या रिपोर्टर हो या उनके संपांदन से संबंध रखता हो, वह पेंपलेट और पोस्टर भी अच्छा बना लेता है। शोध-पत्रिकाओं के लेखकों और सम्पादकों में अपनी ही तरह की खूबियाँ होती हैं। इसी तरह विज्ञान, तकनीक कानून, ज्योतिष और तन्त्र-मन्त्र से सम्बन्धित पत्रिकाओं के लेखक और सम्पादक भी अपनी अलंग खूबियाँ रखते हैं । 

      इलैक्ट्रॉनिक मीडिया 
      इलैक्ट्रॉनिक मीडिया के अन्तर्गत श्रव्य एवं दृश्य दोनों माध्यमों का शुमार होता हैं। श्रव्य संचार माध्यम के अन्तर्गत जहाँ रेडियो, आडियो कैसेट, टेप रिकॉर्डर आदि आते हैं, वहीं श्रव्य एवं दृश्य संचार माध्यम के अन्तर्गत टेलीविजन, वीडियो कैसेट एवं फिल्म आदि की गिनती की जाती है। 

      इलैक्ट्रॉनिक मीडिया के अन्तर्गत ही आजकल नव इलैक्ट्रॉनिक माध्यम जिसके तहत इंटरनेट प्रमुख है, की गणना की जाती है| 

      रेंडियों 
      इन माध्यमों में रेडियो को पत्रकारिता की दृष्टि से “श्रव्य समाचार पत्र' कहा जा सकता है; क्योंकि यह माध्यम समाचारों-सूचनाओं को आकाश में प्रसारित कर सुनाता है। यह माध्यम श्रवणेन्दियों के जरिए सारी दुनिया की बातें श्रोता तक पहुँचाता है। सुदूर दुर्गम स्थानों तक में रहने वालें लाखों-करोड़ों लोग बाहरी दुनिया से जुड़ जाते हैं, जहाँ तक या तो मुद्रण-माध्यम की रसाई नहीं है या जहाँ निर्धनता के कारण दूरदर्शन वगैरह पहुँच नहीं पाये हैं। जैसे प्रिन्ट मीडिया के तहत समाचार पत्र, पत्रिकाएँ, जर्नल, पुस्तकें, पेम्पलेट और पोस्टर के लेखन एवं सम्पादन की अलग-अलग विधियाँ और खासियतें हैं। उसी प्रकार रेडियो के भी विभिन्‍न कार्यक्रम है, जिन्हें विविध विधाएँ भी कह सकते हैं, जिनकी स्क्रिप्ट तैयार करने एवं सम्पादन करने के लिए एक लम्बी-चौड़ी टीम होती हैं, जिनकी अलग-अलग खासियतें होती हैं। यदि समाचारपरक कार्यक्रम है, जिसके तहर समाचार, न्यूजरील या रेडियो रिपोर्ट शामिल है, तो उसका सम्पादक अलग तरह की योग्यता रखता है। लेकिन यदि वार्तापरक कार्यक्रम है, जिसमें साहित्यिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक, राजनीतिक, आर्थिक-सामाजिक या खेल एवं अन्य समसामयिक विषयक वार्ताएँ हैं, तो उनके लिए सम्पादन की एक खास शैली की जरूरत पड़ती है। यदि वार्ताओं से थोड़ा हटकर वार्तालापपरक कार्यक्रम है जिसके अन्तर्गत इंटरव्यू. बातचीत या परिचर्चा तथा संगोष्ठी शामिल है, उसका सम्पादन करने वाले अलग तरह की खासियतें रखते हैं। इसी तरह गीत-संगीत या मनोरंजनपरक कार्यक्रम जिसके तहत शास्त्रीय गीत-संगीत, फिल्‍मी गीत-सैंगीत या लोकगीत-संगीत आते हैं, के सम्पादक अलग होते हैं। ऐसे ही यदि साहित्यिक 'कार्यक्रम हुआ, जिसके अन्तर्गत कहानी पाठ, कविता पाठ एवं कवि सम्मेलन, दर एवं रूपक तथा झलकी आदि का शुमार है, के लिए सम्पादन की कुछ अलग विशेषताएँ होती हैं। पत्रिका एवं युवा पत्रिका शामिल है, उसका स्क्रिप्ट लेखन एवं सम्पादन-संयोजन कुछ अलग ढंग: से होता हैं।



      टेलीविजन 
      जैसे श्रव्य संचार माध्यमों में रेडियो का महत्व है, वैसे ही श्रव्य-दृश्य जनमाध्यमों में टेलीविजन का महत्वपूर्ण स्थान है। लेकिन रेडियो के जरिए केवल हम सुन सकते हैं, जबकि टीवी के जरिए सुन भी सकते हैं और स्क्रीन पर उभरती इबारतों को पढ़ भी सकते हैं। उद्देश्य प्रायः दोनों के एक जैसे हैं- मनोरन्जन, सूचना और समाचार। लेकिन एक बात तय है कि टेलीविजन का अभूतपूर्व विस्तार हुआ है। सुधीश पचौरी का कहना है कि इन दिनों भारतीय जनता को कम से कम 22 से ज्यादा चैनल उपलब्ध हैं। इनमें हिन्दी, अंग्रेजी, बंगला, तमिल, बिहारीं, मलयालम, तेलुगु, उर्द, असमिया, गुजराती, कश्मीरी, पंजाबी, राजस्थानी, कन्नड़, मराठी, उड़िया, इत्यादि भाषाओं के चैनल तो शामिल ही हैं, कुछ चीनी, अरबी, जर्मन, फ्रांसीसी, रूसी भाषाओं के भी चैनल शामिल हैं । आगे डा वाले दिनों में 'कैस' और 'डीटीएच' के आने के बाद इन चैनलों की संख्या और भी बढ़ जाएगी | 

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      माको हर्बल शैंपू बालों से संबंधित सभी प्रकार के प्रॉब्लेम्स को ठीक करने मे कारगर है क्योंकि इसको बनाने मे जिस भी जड़ी बूटियों अथवा फलों  का इस्तेमाल किये  गए है वह हमारे बालों के सभी प्रॉब्लेम्स को दूर करते  है यह पूरी तरह से हर्बल है किसी भी ब्यक्ति की खूबसूरती बाल से ही है पर आज के इस भाग दौड़ की जिंदगी मे अपने बालों को स्वस्थ रखना मुस्किल हो जाता है पर अगर हम नहाते व्यक्त या हपते मे दो से तीन बारमाको हर्बल शैंपू बालों से संबंधित सभी प्रकार के प्रॉब्लेम्स को ठीक करने मे कारगर है

        


      mako


      कितने भी  दिनों से बाल गिर रहे  हो उसके बालों का गिरना केवल एक ही दिन के उपयोग से ही गिरना बंद हो जाएगा 12 प्रकार के जड़ी बूटियों को मिलकर माको शैंपू को तैयार किया गया  है  आइए जानते उन 12 फलों के नाम क्या है जसको मिल कर बनाया गया है 



      • रीठा फ्रूट 
      • शिकाकाई 
      • एलोवेरा 
      • भृंगराज  
      • अमला फ़्रूट 
      • मोथा   
      •  निम्बूसाल 
      • नीम पत्र 
      • संत्रासाल 
      • खस /गणडा /कुस  
      • बकुची 
      • शैम्पू बेस Q.s. 
      इस हर्बल शैम्पू के परिणाम आओरो हर्बल शैम्पू से ज्यादा अच्छा है इसका उपयोग कर के बालों को गिरने से रोका  जा सकता है ये शैम्पू को ऑन लाइन खरीद सकते है ऑफ लाइन मिलन मुस्किल है । धूप मे काम करने वालों आओर धूल मे काम करने वालों के बालों की हालत बहुत ही खराब हो जाती है उनके बालों का रंग भी फीका लगने लगता है बालों मे रुखा  पन आ जाता है बालों का गिरना भी बहुत तेजी से चालू हो जाता है ऐसे प्रॉब्लेम न हो इसके लिए मको हर्बल शैंपू का उपयोग कर के इन  परेसानियों को दूर कर सकते है। आइए जानते है उनके बारे मे जिसको मिला कर इसे बनाया गया  है -

      रीठा फ्रूट,शिकाकाई ,अमला फ़्रूट 
      इस्मे मुकीय रूप से अवला ,रीठा सीकाकाई का इस्तेमाल किया गया है जो बालों और ज्यादा चमकदार हो जाते है क्योंकि ये नेचुरल हर्बल इंगरेडियन्स है जो बालों को और ज्यादा मजबूत और चमकदार बनाते है बाल भी स्वस्थ हो जाते है । वही हम बात करे आवला की भरपूर मात्र मे आक्सीएसीडेंट होता है यह खराब हुए हेयर और सेल्स को रिपेयर करता है और बालों को खराब होने से रोकता है आओर वही बात करे अगर सीकाकाई की तो इसमे पाए जाने वाला विटामिन सी बालों मे चमत्कारिक रूप से फायदा करता है सीकाकाई पी यच लेवल को कम करके बालों मे तेल की मात्रा  को बनाए रखता है बालों को चमक और स्वस्थ रखता है अब बात करते है रीठा की तो इसमे भी एंटीआक्सीडेंट का गुड़ होता है जो बालों को हेल्दी रखने के लिए जरूरी होते है यह एक बेहतरीन क्लीनजिंग का काम करती है जो इन्फेक्शन फैलाने वाले माइगरोअर्गेनिजम को काम कर के बालों को हेल्दी रखता है और जब यही तीनों आपस मे मिल जाते है तो बालों को और मजबूत बना देते है और पनी मे पाए जाने वाले भारी पदार्थों से भी बचते है तो हमे यह बताया गए है की आयुर्वेद मे इन्ही तीनों का उपयोग बालों को हेल्दी रखने के लिए अचूक उपाय माना गया है बाजार मे मई मिलने वाले जीतने भी हर्बल शैंपू है उन सभी मे इन्ही तीनों का उपयोग सबसे ज्यादा होता है ।


      एलोवेरा 
      एलोवेरा ज्यादातर जेल के रूप मे मिलता है या इसे सीधे पाओधे से भी इस्तेमाल किया जाता है एलोवेरा मे पॉलिसेकराईडस और ग्लाइको प्रोटीन होते है ये सर को धन्दाक आओर आराम पहुचते है इसमे प्रोटीओलेटिक्क एंजाइम भी होते है जो डेड सेल्स को रिपेयर करते है एलोवेरा स्कालफस को मॉसचुराइजर करता है जो लोग हेर ट्रांसप्लांट कराते है उन्हे जीने समस्यों का सामना ट्रांसप्लांट के बाद झेलना पड़ता है उससे बचाता है । एलोवेरा बालों को नेचुरिली कंडीसनीग का भी काम करता है । 

      नीम पत्र 
      नीम के तो अनगिनत फायदे है उसी फ़ायदों मे हेयर प्रॉब्लेम्स को नीम अपने गुणो से ठीक कसर्नर मर मदद करता है नीम हमारे बालों मे कोलाईजिन का प्रोडक्सन बढ़ाता  है साथ साथ किसी भी प्रकार के इन्फेक्शन होने से बचाती है इसमे एंटिफन्गल और एंटीडेन्ड्रफ के भी गुण भी पाए जाते है ये हजारों सालों से आयुर्वेदिक औसाधि के रूप मे इस्तेमाल होता है आयुर्वेद मे नीम के फल ,बीज ,जड़ ,छाल सब का प्रयोग होता है बालों का झड़ने से ये तुरंत रोकता है एक ही बार के प्रयोग मे बालों झड़ना रुक जाता है । सिर की खुजली जड़ से खत्म करने मे भी यह कारगर है । 

      भृंगराज 
      भृंगराज का पाओढ़ काही भी मिल जाता है भृंगराज मे बालों के सभी प्रकार के रोगों को ठीक कर देती है ऐसे लोग जो गंजेपन का सिकार हो गए है या उनके बालों का झड़ना रुक ही  नहीं रहा उनके लिए लिए ये बहुत ही लाभगायक होता है भृंगराज को आयुर्वेद मे रसायन मन गया है इसे भंगर भी कहा जाता है कुंडल वर्जन भी कहा जाता है । 

      संत्रासाल
      संत्रासाल या कहे संतरे के छिलके इसमे की प्रकार के गुड़ पाए जाते है बालों की हर एक समस्या के लिए यह बहुत उपयोगी है संतरा मे सबसे ज्यादा मात्र मे विटामिन सी पाया जाता है विटामिन सी हमारे शरीर मे रोजाना 60 से  90 मिली ग्राम की आवस्यकता होती है जो की मात्र एक संतरे से ही मिल जाता है । विटामिन ए , विटाकेरोटिन ,फाइवार की भी मात्र खूब होती है इसमे ये सभी बालों को जड़ से रोग मुक्त कर के बालों को जड़ से काला और मजबूत बनाते है । संतरे के जूस को बिना छिलके निकले ही उससे जूश बालों के साथ साथ सरीर के भी कीई भागों को स्वस्थ रखने मे मदत करता है । 

      बकुची/बवाची 
      ये आयुर्वेद मे इसका उपयोग उन औषधीय के रूप मे प्रयोग किया जड़ है जीससे बड़ी बीमारियों को ठीक किया जाता है इसका प्रयोग कर के वायु को सुद्ध किया जाता है इसका धुआ वायु मे उपस्थित हानिकारक तत्वों को खत्म कर के उसे शुद्ध करता है । 

      फोटो बेचने वाला एप earn money online without investment for students

      मोबाईल से खिची हुई फोटो आनलाइन बेच कर पैसे कैसे कमाए आईए जानते है बिल्कुल नया एप 


      जी हा अनलाइन फोटो बेचिए और  पैसे कमाइए बिल्कुल न्यू एप है जिसका नाम है Foap  इस एप के जरिए आपके मोबाईल से ही खिची हुई फोटो को अनलाइन इसी एप मे उपलोड करना है और कुछ भी नहीं करना है जी हा दोस्तों Foap  app फोप एप मे कुछ ऑपसन्स को फालों करना है बस फोटो बिकते ही पैसे आपके खाते मे आ  जाएगी । 


      अब आप सोच रहे होंगे की इस फोटो को खरीदता कोन होगा जी हा अप सही सोच रहे है फोटो की जरूरत बड़ी बड़ी कंपनियां अपने कंपनियों का प्रचार ऐड मे इसी फोटो का इस्तेमाल करती है क्योंकि वो अपने ऐड के लिए कही  फोटो खीचने नहीं जाएगी वो अनलाइन खरीद लेते है और  अच्छा पैसा भी देती है कम्पनिओ के अलावा अनलाइन साइट बनाने वालों ,youtub ,आदि को भी अपने साइट से रिलेटेड फोटो की अवस्यकता होती है और वो अनलाइन ही फोटो को खरीदते है । 


      अब आप ये भी सोच रहे होंगे की अनलाइन तो सर्च कर के भी फोटो ले सकते है पर कापीराइट से बचने के लिए उन्हे पैड फोटो की जरूरत पड़ती है क्योंकि वो कॉपी राइट नहीं होती है ।आइए जानते है Foap app मे ये कैसे होता है -

      • सबसे पहले आपको अपने मोबाईल से अलग अलग प्रकार के फोटो खीचना है । 
      • प्ले स्टोर से Foap app को अपने मोबाईल मे इंस्टॉल करना है  
      • अकाउंट को क्रीएट कर के लॉगिन हो जाइएये
       
                                                    
      Foap



      • me पर क्लिक करे और फिर + पर क्लिक करे और गैलरी से फोटो सिलेक्ट कर के जीससे रिलेटेड फोटो हो वो टैग सलेक्ट कर दे अप एक से ज्यादा टैग भी सलेक्ट कर सकते है ज्यादा टैग सलेक्ट करने से ज्यादा पैसे भी मिलते है । 
      पब्लिश पर क्लिक करे 
      foap


      • सभी ऑपसंस मे yes को सलेक्ट करना है 
      • पब्लिश पर क्लिक कारें 


      foap
      इस तरह आपकी फोटो अपलोड हो जाएगी और जो फोटो परचेस करना चाहेगा वो परचेस कर लेगा । 

      मिले हुए पैसे को विथड्रा करने के लिए थ्री लाइन पे क्लिक कर के yor selse पर क्लिक करके विथड्रा कर सकते है हा जब आपके 5$ हो जायेगे तभी आप विथड्रा कर सकते है । 

      morth nic in ,MoRTH क्या है ?

       MORTH 


      MORTH का फुल फार्म मिनिस्ट्री ऑफ रोड ट्रान्स्पोर्ट एण्ड हाइवे (Mnistry Of Road Transport and Highway) होता है यह विभाग रास्ट्रीय  राजमार्गों ,परिवहन विभाग एवं परिवहन अनुसंधान को और विकसित बनाने का काम करती है एवं उसकी कार्य व्यवस्था को देखती है   इसको दो भागों मे बाटा  गया है सड़क और परिवहन ये दोनों विभाग भारतीय सड़क दुर्घटना से बचाव का भी कार्य करती है । 

      morth


      • सड़क  विभाग 
      इस भाग का काम भारत के रास्ट्रीय राजमार्गों के विकास पर ध्यान देना और कार्य व्यवस्था का संचालन करना । राज्य की सड़कों और राज्य की आंतरिक छेत्र की सड़कों को अपसमे मिलन तथा आर्थिक कार्य की सड़कों को तकनीकी सहायता एवं वत्तिय सहायता प्रदान करना इनका काम है । सड़कों आओर पुलों के निर्माण मे सहायता प्रदान करना क्योंकि इसके पास निर्माण के तकनीकी जानकारी का भंडार है । राज्य किसदकों के साथ पुलों को ये तकनीकी जानकारी प्रदान करने का भी काम करते है । 
      • परिवहन विभाग 
      इस विभाग मे भारत के परिवहन छेत्र का विकास एवं उसकी कार्य प्रणाली का संचालन किया है जाता है इस विभाग का मुख्य कार्य परिवहन सड़क सुरक्क्षा  के योजनाओ का निर्माण करना  परिवहन निगम अधिनियम 1950 के नियमों का संचालन करना ,सड़क दुर्घटना की सारी जानकारी को इकटठा और पुनः दुर्घटना से बचने के जागरूक अभियान चलना आओर उसके सटीक उपाय निकालना ।  

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      मोबाईल स्क्रीन पर बार बार आने वाले ऐड को कैसे हटाए 2022


      मोबाईल  स्क्रीन पर आने वाले विडिओ ऐड को बंद कैसे करे

      MSVAS 

      मोबाईल  की  दुनिया  मे  फ्री माइंड के  साथ  मोबाईल को चलाना किसे  पसंद नहीं है पर  कभी कभी हमने देखा  है  की मोबाईल  चलते  समय अचानक  से  हमारे  मोबाईल  के स्क्रीन  पर विडिओ  चलने लगता  है जो  की  एक विडिओ  एड   है  जो  मोबाईल पर  अपना  कब्जा  जमा  लेती है    हटाने पर हटता भी नहीं  इंटरनेट पर इसे हटाने   के  कई  तरीके है पर सभी कारगर नहीं है । 

       कभी कभी ऐसे भी कुछ एप होते है जो मोबाईल मे इंस्टॉल हो जाते है पर वे एप लिस्ट मे दिखाई नहीं  देते  ओर वो अंडरग्राउण्ड  मे चलते रहते है  और विडिओ ऐड देते रहते है यह मोबाईल के लिए  नुकसानदायक  है । डाटा  लीक होने का खतरा बना रहता  है डाटा  भी चोरी कर सकते है इनसे बचना बहुत ही जरूरी है इसके लिए आपको मैं एक तरीका  बताउगा जिससे आप  अपने मोबाईल को  सुरक्छीत   कर सकते है ।  

      • सबसे पहले आपको अपने मोबाईल की सेटिंग मे जाना है और एप सेटिंग मे जा कर उन ऐप्स को  डिलीट करदेना है जो बिल्कुल नए है जिनका आपको कोई यूज नहीं है जैसे कुछ गेम्स एप होते है जो आपको होम लिस्ट मे दिखाई ही नहीं देगे पर ऐप सेटिंग के अंदर सो बाई सिस्टम मे दिखाई देगे उन्हे आपको अनिन्स्टाल कर  देना है ऐसा कर के आपको आपके मोबाईल को सुरकछित रख सकते है ।इसके अलावा सबसे जरूरी तरीके को आईए जानते है -

      VIDEO ADD PROBLEM

       

      • एंटीवाइरस इन्स्टाल करे 
      • बिना अपग्रेड किए स्केन करे 
      • थिप फाइल  अथवा एप या कोई अन्य वाइरस डिटेक्ट को डिलीट करे या रिसॉल्व करे 
      • फाइल लोकेसन को देख कर फाइल मैनेजर से डिलीट कर दे  

                   आप किसी एंटीवाइरस को पहले मोबाईल मे इंसटाल कर लीजिए जैसे एभीजी  एंटीवाईरस प्ले स्टोर इसके अलावा  कोई भी अप एंटीवाइरस को इंस्टाल कर सकते उसके बाद इंस्टॉल हुये  एंटीवाइरस को खोले  उससे बिना अपग्रेड किए बिना ही उससे अपने मोबाईल को सकने कीजिए अपग्रेड का मतलब है कुछ  एंटीवाइरस पैड होती है। 

      पर बिन पैसे दिए ही आपको अपने प्रॉब्लेम को सॉल्व करना है तो आप पहले तो मोबाईल को एंटीवाइरस से स्केन    करेगे जिससे अनसपोर्टेड एप प्रॉब्लेम मे या थीप मे शो होने लगेगी ये वही ऐप  है जो मोबाईल के अंदर  इन्स्टॉल है। 

        जो होम  मे शो नहीं होती है । एंटीवाइरस जिस एप को थिप शो करता है वही फाईल मैंनेजर   मे उस एप के लोड होने का लोकेसन  भी शो होता है आप उसे या तों यही से हटा  सकते है या  फिर दिए हुए लोकेसन से  फ़ाइल मैंनेजर मे जा कर उसे डिलीट कर सकते है इस तरह उसे हटाने के बाद अप इस एंटी वाइरस को अनइंस्टाल कर दे क्योंकि आप को इसकी कोई जरूरत नहीं होती जब इस तरह के विडिओ एड दिखाई दे तो आप पुनः इसी तरह इस प्रॉब्लेम को सॉल्व कर सकते है । 

      वायु प्रदूषण 'Air Polution ',दुस्प्रभाव ,बचाव ,कारण

       वायु में प्रदूषण से बचना  है तो रोजाना इनका सेवन करे 

      भारत में आज के समय में सबसे ज्यादा प्रदूषण दिल्ली में है जहां  शुद्ध ऑक्सीजन मिलना वातावरण में संभव ही नहीं ऐसे माहौल में लोगो को सांस लेना भी बीमारी को बुलावा देने के बराबर है भारत में दिल्ली ही नहीं भारत के अन्य राज्यों में प्रदूषण का स्तर धीरे धीरे बढ़ रहा है इस प्रादु सं से बचना बहुत ही आवश्यक है क्यों की ऑक्सीजन की ही वजह से हम जिंदा  है और जब वही प्रदूषित हो जायेगा तो हम कई बीमारियों के जाल में फस जायेंगे जिससे बचना  हमारे लिए बहुत ही आवश्यक है बढ़ते हुए इस प्रदूषण से बजने के लिए मुख्य उपाय है 

       विटामिन स युक्त आहार लेना   

       विटामिन स युक्त आहार लेना अच्छा विकल्प है क्योंकि विटामिन सी  से इम्युनिटी बढ़ती है विटामिन स से भरपूर फ्रूट्स और सब्जियों का सेवन करना चाहिए एयर पोलुशन से बचने के लिए खूब सारा पानी पीना भी बहुत सहायक होता है पानी ज्यादा पीने से  मेटाबॉलिज्म सही रहता है इसलिए पानी का उपयोग बहुत आवश्यक है





      गुड़ का उपयोग  

      गुड़ हमारे सरीर के लिए अवस्यक है यह बॉडी के अनवास्यक तत्व को बाहर निकालने मे सहायक है ये गले ओर फेफड़े मे जमी हुई धूल को साफ करता है। 

      सहद का उपयोग 

      सहद का उपयोग करने से शरीर में रक्त संचार बढ़ता है और अगर इसके साथ काली मिर्च या अदरक के रस को मिला कर सुबह शाम लिया जय तो प्रदूषण से के साथ कि  बैक्टीरिया भी  साफ हो जाएगी साहद के साथ अदरक का रस लेने से इम्यूनिटी  भी मजबूत होती है 

      हल्दी का उपयोग करे  

      हल्दी का उपयोग बहुत लाभदायक है क्योंकि प्रदूसण  से ईनफेकटेड को रात मे दूध मे हल्दी को मिलकर सोने से पहले लेना चाहिए हल्दी मे पाए जाता है एंटी इंफलामेट्रि   गुड़ जो जमे हुए गले की बैक्टीरिया आओर सूजन दोनों को सही करने मे कारगर है  हल्दी ओर घी को एक साथ मिल कर लेने से खासी मे भी आराम मिलता है 

       टमाटर का उपयोग 

      टमाटर के उपयोग से हवा के  प्रदूषण  से बच जा सकता है टमाटर मे बीटा केरोटिन ,लाइकॉपीन ओर विटामिन सी से भरपुर है जो स्वास के रोगों मे भी फायदा करता है बीटा केरोटीन फेफड़े के लिए लाभदायक है । 


      वायु प्रदूसण  के कारण 

      वायु प्रदूसन का सबसे बड़ा  कारण मानव ही है क्योंकि बढ़ती हुई जनसंख्या और  उसकी जरूरतों को पूरा करने के लिए बड़े बड़े उद्योग लगाए जा रहे है ,जिनकी फैक्ट्रीयों से निकालने वाला कला धुआ हवा मे जहार घोल रहा है । ये जहरीली गैस हवा को प्रदूसीत कर रहे है साथ ही बड़े पैमाने मे परिवहन के संसाधनों से निकालने वाला धुआ भी हवा मे प्रदूसण फैल रहे है ये दूषित हवा मनुस्य के स्वसन तंत्र को पूरी तरह से नुकसान पहुचाता है । पेड़ों का काटना भी वायु की शुद्धता प्रभावित करता है क्योंकि की पेड़ों की संख्या ज्यादा होने से वायु को को फ़िल्टर करने काभी काम ये पेड़ ही करते है शहरों से निकालने वाला कचरे को खुले मे फेका जाता है कचरा सड़ने  से  कयी प्रकार की हानिकारक गैस वातावरण मे मिल कर वातावरण को प्रदूषित करते है । इसलिए मनुस्य हित के लिए इन सभी कारणों पर ध्यान देना चाहिए ।  


      यौगिक उड़ान क्या है व्याख्या कीजिए? Yogik Flying

       यौगिक उड़ान

      यौगिक उड़ान  विचारों का एक प्राकृतिक क्रिया है जो चेतना प्राकृतिक विधान छेत्र समस्त संभावनाओं के छेत्र से परियोजित है , यह मानव चेतना की सरलतम अवस्था है और भावातीत  ध्यान सिद्धि कार्यक्रम के जरिये उत्साहित हैं  जो यौगिक उड़ान मन और शरीर का समन्वय प्रस्तुत करता है 


       यौगिक उड़ान का नियमित अभ्यास ब्यक्ति के केन्द्रीय स्विच के नियंत्रण को आगे बढ़ाता है जहां से प्राकृतिक विधान सभी के जीवन को शासित करता है और चेतना के प्रत्येक कण को चेतना के भीतर से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को प्रशासित करता है यह मनुस्य की सांत सहज चेतना का आत्म रूप है यौगिक फ्लाइंग पूर्ण रूप से मन और शरीर के सबंध को और अच्छा बनता है   

      यौगिक उड़ान के प्रथम चरण में ही सरीर थोड़ी थोड़ी दुरी को उठता है जिसे होपिंग कहते है यह अभ्यास ब्यक्ति को आनंद का मजा के रूप में अत है जो मन और शरीर की गहराई को दर्शाता है यौगिक उडान का नियमित अभ्यास ब्यक्ति मन की प्रकृति के नियमो के केंद्र पर स्थापित करता है

      Yogik  Flying


      जिसे हम मूल स्त्रोत कहते है यहाँ से प्रकृति क नियनो के जरिये सभी के जीवन में विकास का रास्ता तैयार होता है सृजनात्मक बुद्धि जो प्रकृति के प्रत्येक कण में है ब्यक्ति को अनंत सृजनत्मक शक्ति अजेयता और ब्यवस्था का ज्ञान प्रदान करता है 

      योगिक उड़ान का अभ्यास प्रकृति के नियमो के एकीकृत करने की छमता के जरिये इच्छा को पूरा करता है 

      यौगिक उड़ान की क्रिया यह सिद्ध करती है की प्रत्येक ब्यक्ति ध्यान और सिद्धि कार्यक्रम के जरिये अपनी सहजतम चेतना से कार्य करने की छमता और प्रकृति की नियमो पर प्रभुत्व प्राप्त करता है हमारा यह भवतित और सिद्धि कार्यक्रम प्रत्येक के लिए अनंत बुद्धिमता और पूण विकास की तरफ ले जाता हैl  


       यह कार्यक्रम चेतना के उच्च स्तरों को प्राप्त करने की कुंजी है यह अभ्यास के प्रभाव से ब्यक्ति का जीवन प्रकृति की सहयोग से पोसित होता है 

      सभी माता पिता और शिक्छक और शासकीय कर्मचारियों को यह कार्यक्रम प्रकृति के नियमो केसहयोग के लिए और परेशानियों दुःख से बचने के लिए नित्य अभ्यास उपलब्ध कराना चाहिए 

      सफेद बालों को काला करने की आयुर्वेदिक दवा ,बालों का गिरना (hair fall )

      सफेद बालों का रामबाण इलाज या बाल काले करने का मंत्र 

      नमस्कार दोस्तो

      आज के दौर में कोई भी व्यक्ति ये नही चाहेगा की उसके बाल सफेद दिखाई दे।वो तो चाहता है कि उसके बाल कभी सफेद ही ना हो क्योंकि अगर काले बाल ना हो तो उसकी सबसे सुंदर छवि को नहीं दिखा सक्ता। उसकी सुंदरता को उजागर करने वाले वही काले बाल ही है चाहे पुरुष के हो या महिला के लिए।

       लोग अपने बालो को काला करने के लिए सभी प्रकार के तरीकों का इस्तेमाल करते है वो इस काम में बहुत प्रयास करते है की मेरे बाल किसी तरह काले हो जाय।आज मैं जिस विषय की बात कर रहा हु उस परेशानी को दूर करने के बहुत ही सरल उपाय है।

      आइए उन उपाय के बारे में जानते है:-

      सफेद बालों को कला करने का एक ही मध्यम है और उसका नाम है आंवला क्योंकि इस धरती पर आंवला ही एक ऐसा फल जिसे धरती का अमृत माना गया है इसमें पाए जाने वाले आवश्यक तत्व कभी खत्म नहीं होता है।बालों के अलावा यह शरीर के अन्य भाग में भी यह फायदेमंद साबित होता है।




      बाजार में मिलने वाला सुखा आंवला की एक कली ले ओर खाने के बाद उसे टॉफी की तरह मुंह में रख कर चूसे ।

      मुंह में रख कर खाने से आंवला लार में मिल जाता है जो पचने मे सरल होता है ओर खाने के बाद लेने से पाचन शक्ति भी बढ़ती है, रोज सूखा आंवला खाए ऐसा करने से आपके सफेद बाल जड़ से काले उगने लगेगे।इसके साथ आप आंवले के तेल का भी उपयोग लगाने में करे ।


      balo ko jad se kala


      इसके अलावा प्याज के  रस को लगाने से भी बालो को स्वस्थ बनाया जाता है।  प्याज में पाए जाने वाले आवश्यक तत्व जो बाल को मोटा करते हैं और बालो का झड़ना एक ही दिन के इस्तेमाल से रोक देता  है 

      एक दिन में एक प्याज का उपयोग करना है, एक प्याज को ले ओर  वजन दार समान से उसे कूट दे उसके छिलके निकाल कर बालो पर रगड़े ।यह प्रक्रिया अप हफ्ते मे दो से तीन बार करे आईएएस तरह आपके बाल मजबूत आओर घने भी होंगे । 

       धन्यवाद दोस्तो..।

      DAVP डीएबीपी क्या है,5 महत्वपूर्ण कार्य ,फोटो विभाग

       DAVP डीएवीपी  विज्ञापन एवं दृश्य  श्रव्य  प्रचार निदेशालय


       1 अक्टूबर,  1955 से यह विभाग सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से जुड़ा हुआ है I इसे पहले अंग्रेजी में संक्षिप्त रूप से डी.ए.वी.पी. नाम से जाना जाता था अभी से विज्ञापन एवं दृश्य प्रचार निदेशालय कहा जाता हैI 

      यह निदेशालय वह माध्यम  केंद्रीय एजेंसी हैI  यह लोगों को सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों की पूर्ण जानकारी देता हुआ उन्हें इन कार्यक्रमों में भागीदारी के लिए प्रेरित करता हैI  यदि यह निदेशालय समाचार पत्रों में विज्ञापनों ,प्रदर्शनी , पुस्तिकाओं,   फोल्डर, पोस्टर , होल्डिंग, रेडियो और टेलीविजन ओके विज्ञापनों, अति लघु फिल्म, बसों के पैनलों, सड़कों की होल्डिंग्स आदि के जरिए अपना काम करते हैंI इस निदेशालय के देशभर में कार्यालय कार्यरत हैI


       महत्वपूर्ण कार्य

       

      1. मुद्रित प्रचार-मुद्रित प्रचार सामग्री के तहत पुस्तिकाएँ, फोल्डर, पोस्टर तथा मुख

       हस्तियों के भाषण आदि छापे जाते हैं। नई खाद्य सुरक्षा प्रणाली, भारत छोड़ो आन्दोलन

       उर्वरक मूल्य नीति, नई आयात त-निर्यात नीति, फिल्म समारोह, पर्यावरण संरक्षण,

      मस्जिद जैसे विषय लिये जाते हैं।


      2. प्रेस विज्ञापन-निदेशालय के प्रेस विज्ञापन के माध्यम से समाचार-पत्रों और

      पत्रिकाओं के लिए विज्ञापन जारी किए जाते हैं। ये विज्ञापन आयकर, स्वास्थ्य और परिवार

      • कल्याण, एड्स रोग प्रतिरक्षक टीके मद्य-निषेध, राष्ट्रीय एकता और साम्प्रदायिक सद्भाव,

      और वस्त्र उद्योग जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर होते हैं। यही नहीं, यह विभाग विश्व 

      जनसंख्या दिवस, राष्ट्रीय बाल जीवन आदि पर विशेष परिशिष्ट भी निकालता है।


      3. श्रव्य-दृश्य प्रचार-निदेशालय इस विभाग द्वारा रेडियो स्पॉट, जिंगल्स और प्रायोजित

      कार्यक्रम वीडियो स्पॉट्स, अतिलघु फिल्में, वृत्तचित्र आदि तैयार करता है। स्वास्थ्य और परिवार

      कल्याण के बारे में विभिन्न कड़ियों वाली अतिलघु फिल्में (संवरती राहें, हमारा सपना) इसी

      एकांश द्वारा तैयार की गई हैं। रेडियो पर प्रायोजित कार्यक्रमों में महिला और बाल विकास

      पर ' नया सवेरा' और ' आओ हाथ बढ़ायें' उपभोक्ता अधिकारों पर ' अपने अधिकार तथा स्वास्थ्य

      और परिवार कल्याण पर' ' साक्षरता कार्यक्रम आदि निर्मित किये गये।


      4. बाह्य प्रचार-निदेशालय के बाह्य प्रचार विभाग द्वारा होर्डिंग, बस पैनलों, किओस्कों,

      सिनेमा स्लाइडों, वाल पेंटिंग्स, कपड़े के बैनरों तथा अन्य तरीकों से प्रचार किया जाता है।

      इसके अन्तर्गत नशीले पदार्थ और शराब के नुकसान, लड़कियों को शिक्षा, राष्ट्रीय एकता और

      साम्प्रदायिक सद्भाव, साक्षरता, ऊर्जा संरक्षण, स्वास्थ्य आदि परिवार कल्याण, सेना और नो

      सेना में भर्ती, भारत का अन्तर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह आदि महत्वपूर्ण विषय लिये जाते हैं।

      DAVP
      DAVP


      5. प्रदर्शनी – विज्ञापन एवं दृश्य प्रचार निदेशालय अपने प्रदर्शनी वाहनों के जरिये सरकार

      के विभिन्न सामाजिक-आर्थिक कार्यक्रमों का प्रचार करता है। जैसे आज का भारत, बालिका

      शिशु (गर्ल चाइल्ड), भारत छोड़ो आन्दोलन (क्विट इण्डिया मूवमेंट), बेहतर भविष्य की ओर,

      विश्व जनसंख्या, भारत प्रगति के पथ पर आदि। उदाहरणार्थ 1992-93 में' गंगा ',' एक राष्ट्र

      और एक प्राण ' और' बेहतर भविष्य की ओर ' प्रदर्शनियाँ हरिद्वार में अर्द्ध-कुम्भ मेले तथा उज्जैन

      के सिंहस्थ मेले पर आयोजित की गई। सन् 1997 में 15 अगस्त तथा उसके आस-पास' भारत

      स्वतन्त्र के 50 वर्ष ' शीर्षक प्रदर्शनियाँ जगह-जगह लगाई गई इसमें पिछले 50 वर्षों में हुए

      विकास को लगभग 600 फोटोग्राफ, मॉडलों, पैनलों अन्य दृश्य माध्यम से प्रदर्शित किया गया।

      इस प्रकार यह निदेशालय देश के नये आर्थिक कदमों (नयी औद्योगिक नीति, नयी व्यापार

      नीति, नयी आयात-निर्यात नीति, केन्द्रीय बजट, नेहरू रोजगार योजना, नई उर्वरक नीति) और

      ग्रामीण विकासों (एगमार्क, पोषाहार, सप्ताह, विश्व खाद्य दिवस, उर्वरक मूल्य नीति और

      किसान) स्वास्थ्य और परिवार कल्याण (परिवार नियोजन, रोग प्रतिरोधक टीके, विवाह की

      सही उम्र, छोटा परिवार, पुरुष नसबन्दी), मेले (अर्द्ध-कुम्भ मेला), फिल्म समारोह (अन्तर्राष्ट्रीय

      फिल्म समारोह) आदि विषयों पर महत्वपूर्ण जानकारी देने का प्रचार-प्रसार करती है। यह

      निदेशालय अर्थव्यवस्था के विविध पक्षों की जानकारी देने वाली पाक्षिक पत्रिका' इंडिया अपडेट '

      भी प्रकाशित करता है।


      फोटो विभाग

      यह विभाग केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के पत्र-सूचना कार्यालय के अधीन

      कार्य करता है। यह विभाग भारत सरकार की ओर से देश तथा विदेश में सरकार के विकास

      कार्यों और मंत्रियों आदि के कवरेज के श्वेत-श्याम और रंगीन दोनों प्रकार के चित्र तैयार

      इस विभाग द्वारा तैयार किये गये फोटो आम लोगों और गैर-प्रचार संगठनों को

      करने पर उपलब्ध कराये जाते हैं।

      महत्वपूर्ण कार्य

      1. यह विभाग पत्र सूचना कार्यालय के माध्यम से देश भर में समाचार पत्रों को फोटो

      • उपलब्ध कराता है। विदेशों में भारतीय दूतावासों को ये फोटो विदेश मंत्रालय के विदेश प्रचार

      विभाग द्वारा उपलब्ध कराये जाते हैं।


      2. यह विभाग अतिविशिष्ट मेहमानों और भारत यात्रा पर आये राष्ट्राध्यक्षों, शासनाध्यक्षो

      समय-समय पर मंत्रिपरिषद् में शामिल किये गये मंत्रियों तथा महत्वपूर्ण व्यक्तियों के छायाचित्र

      को बनाकर जारी करता है।


      3. फोटो विभाग शौकिया फोटोग्राफरों के लिए राष्ट्रीय प्रतियोगिता तथा प्रदर्शनी का भी

      आयोजन करता है। ये प्रतियोगिताएँ सादे व रंगीन दोनों तरह के छायाचित्रों पर आयोजित की

      जाती हैं। इन प्रतियोगिताओं का शीर्षक हर साल बदलता रहता है। उदाहरणार्थ, सन् 1997

      में अखिल भारतीय फोटो प्रतियोगिता आयोजित की गई जिसका विषय था ' आजाद भारत के

      पचास वर्ष आज'।