जनसम्पर्क(public relation ),अधिकारी ,प्रकृति , महत्व ,साधन ,सम्पादन कला

 

जनसम्पर्क(public  relation )

जनसम्पर्क(public  relation )

जनसम्पर्क दो शब्दों के मेल से बना है, जिसका अर्थ है- आम आदमी से मेल-जोल स्थापित करना। आम आदमी से मतलब उस आदमी से है जो विशिष्ट नहीं है और किसी प्रकार के आडम्बर से मुक्त है | जनसंपर्क का उद्देश्य होता है- जनता से संवाद स्थापित करना और उस संवाद के माध्यम से जनता को नई-नई जानकारी देना और कोशिश करना कि जनता उसे स्वीकार करे, अपने जीवन में उसे अपनाये तथा उसका अनुकरण करे। जनसंपर्क की बहुत सी परिभाषाएँ दी गयी हैं,


 जैसे- आक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी में 'पब्लिक रिलेशंस' का मतलब किसी संगठन या किसी मशहूर व्यक्ति द्वारा जनता में अपनी अच्छी छवि बनाना बताया गया है। जबकि सैम ब्लैक ने अपनी पुस्तक 'प्रैक्टिल पब्लिक रिलेशंस' में बताया है- “जनसंपर्क का मूल उद्देश्य दो पक्षों के बीच सत्य ज्ञान व सम्पूर्ण सुचना पर आधारित समझदारी विकसित करना है” जाहिर है कि दो पक्षों में एक पक्ष कोई सरकारी व्यक्ति हो सकता है, कोई सरकारी- गैरसरकारी या व्यावसायिक प्रतिष्ठान हो सकता है, सरकार या उसका अमला हो सकता है, लिन पक्ष आम आदमी ही है। शायद इसीलिए वेब्सटर की 'न्यु इंटरनेशनल डिक्शनरी' में पर्क की अग्र व्याख्या की गयी है- “किसी संस्था, संगठन, व्यक्ति किशिव जनता या व्यापक अर्थों में भिन्‍न समुदायों के बीच व्याख्या सामग्री द्वारा अंतर्सबंधों का विकास व जनसमुदाय का आकलन कर  संबंधों की प्रोन्नति का नाम जनसंपर्क है।” यानी किसी व्यक्ति, किसी संगठन अथवा किसी संस्थान और जनता के बीच समझदारी और सद्भावना कायम करना ही जनसंपर्क है। आप चाहें, तो इसे परस्पर सद्भावना और समझदारी विकसित करने की कला भी कह सकते हैं और विज्ञान भी | 



जनसंपर्क का महत्व 

जनसंपर्क के महत्व को इसी बात से समझा जा सकता है कि जितनी पुरानी जनता है, उतना ही जनसंपर्क भी । उसके महत्व को समझने के लिए दुनिया के प्रतिष्ठित साहित्य से उदाहरण दिये जा सकते हैं! के.पी. नारायण ने अपनी पुस्तक “संपादन कला' में ऐसे कई उदाहरण दिये हैं । पहला उदाहरण, विलियम शेक्सपीयर के सिर से दिया है कि जब ब्रूट्स ने उद्घोषित किया कि सीजर की हल कारण बताये जायेंगे और लोगों से अभ्यर्थना की कि रोमवासियों, देशवासियों, प्रेमियों, मेरी बात सुनो, तो वह जनसंपर्क ही साध रहा था। जब एंटनी ने उद्घोषणा की कि साथियों, रोमवासियों, देशवासियों मेरी बात सुनो, तो वह सुन्दर ढंग से जनसंपर्क साध रहा था। दूसरा उदाहरण उन्होंने 'कृष्ण कथा' से दिया है कि जब भगवान कृष्ण पर स्यमंत कमणि चुराने का आरोप लगाया गया और वे खोयी हुई मणि की खोज में निकल पड़े और अंत में जब मणि प्राप्त हो गयी, तब उन्होंने जनसंपर्क का भव्य कार्य किया था। इस कार्य में उन्हें स्यमंतक मणि अपने स्वयं के लिए मिल गई और जामवीत और सत्यभामा जैसी सुंदरियाँ मिल गरयीं। इससे है कि यदि उचित रीति से जनसंपर्क किया जाए, तो जिस काम के लिए प्रयास  किया जाता है, उसमें सफलता अवश्य मिलती है। 


तीसरा उदाहरण 'राम कथा ' से देते ध है कि जब भगवान रामचन्द्र ने बताया   कि उन्होंने बालि का वध क्यों किया और सुग्रीव ' के साथ जो उन्होंने संधि की थी ,उसका स्वरूप क्या था , तो वे इस संघि के संबंध में    जनसंपर्क ही कर रहे थे। सभाओं, प्रवचनों तथा की दौडी यात्रा' भी एक तरह को जनसंपर्क ही व और सत्कर्म हेतु प्रेरणा  यात्राओं के दौरान जन सामान्य से मिलना, उन्हें में जागे विश्वास' के ध्यय से चर उसी का हिस्सा था। भारत यात्रा एक प्रयास : हू णों के आधार पर कहा जा सकता है दस अभियान जनसंपर्क ही तो हैं।


 जनसम्पर्क  की प्रकृति 

यह तय कर पाना कठिन है की  जनसंपर्क कला है या विज्ञान । कुछ विसेसज्ञों का कहना है की यह विज्ञान है । जबकि कुछ विसेसज्ञ इसे कला इस लिए मानते हैं क्योंकि अपने संस्थान की छवि को निखारने के लिए वह व्यवहारिक प्रयोगों का  सहारा लेता है।  ऐसे विशेषज्ञों का कहना है कि सैद्धांतिक रूप से जनसंपर्क भले ही कला हो, लेकिन व्यावहारिक रूप से विज्ञान ही है । ए.आर. रालमैन तो इस बहस को एक नये दृष्टिकोण से देखते हैं और विज्ञान की जगह वे इसे सेवा कहना ज्यादा बेहतर समझते हैं। उन्होंने कहा की जनसंपर्क सेवा व कला है, जिसे कंपनी के व्यापारिक हितों व आवश्यकता के अनुसार ढाला जाना चाहिए। कृष्ण कुमार मालवीय ने 'आधुनिक जनसंपर्क' में प्रकृति की चर्चा करते हुए लिखा है कि जनसंपर्क की गतिविधियों द्वारा राज्य व केन्द्रीय सरकारें, ग्राम पंचायत, स्थानीय निकाय, राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक विभिन्‍न सामयिंक मुद्दों पर जनता का समर्थन एवं विश्वास अर्जित करने का प्रयास करती है। जनसंपर्क की प्रकृति से ही जनसंपर्क के स्वरूप के समस्त गुणों का निर्धारण होता है। लोकहित, समाजहित, राष्ट्रहित एवं लोकाचार की सर्वागिकता के साथ मानव स्वभाव को संवेगात्मक रूप से अभिभूत कर उनका दृष्टिकोण अपने पक्ष में परिवर्तित करना जनसंपर्क की प्रकृति में समाविष्ट है। 


यह बात बिल्कुल सही है कि जन संचार माध्यमों के जरिए जनता सब पर नजर रखती है, लेकिन जनता की नजर टेढ़ी नं हो इस बात पर नजर रखना "जनसंपर्क' की प्रकृति में शामिल है। किसी संगठन का समग्र हित जनता के नजरिए पर निर्भर है। यों तो "जनसंपर्क' की प्रकृति, _ स्वरूप और उसकी अवधारणा को परिभाषित करना अपने आप में दुष्कर है, जैसाकि नारमैन स्टोन ने कहा भी है कि जनसंपर्क के वास्तविक स्वरूप को जानना जटिल है, क्योंकि इसमें बहुत मिन्‍्नताएँ हैं। बावजूद इसके वह जनसंपर्क के उद्देश्यों को स्पष्ट मानता है। वह कहता है कि रा | कोई श्रम नहीं है, उसके उद्देश्य स्पष्ट हैं। जहाँ तक नैतिक मूल्यों का प्रश्न है, तो जनसंपर्क प्रकृति में नैतिक मूल्यों के महत्व को भी स्वीकार किया गया है। कहने का मतलब  यह कि संचार मे ईमानदारी व गंभीरता के साथ तथ्यों की सत्यता का होना भी अनिवॉर्य है, सिफ सदाचरण ही पर्याप्त नहीं। जनसंपर्क की गतिविधियाँ ऐसी हों जिनसे जनता का ध्यान आकर्षित  हो, ताकि उसका परिणाम संगठन के हित में हो | 


जनसपंर्क अधिकारी 

प्रायः हर बड़े संगठन में जनसंपर्क अधिकारी नाम का एक पद होता है। यदि संगठन बहुत बड़ा हुआ, तो जनसंपर्क कार्यालय नाम से पूरा का पूरा एक हाईटेक दफ्तर ही होता है. जिसमें एक प्रमुख जनसंपर्क अधिकारी होता है और कई सहायक भी हो सकते हैं। इनका अपना अलग वेतनमान होता है। प्रायः हर विभाग में बाकायदा इनकी रिक्तियाँ आती हैं। प्रतियोगितात्मक परीक्षा और फिर साक्षात्कार के जरिए इनका चयन होता है। इन पर भी वह सेवा शर्ते लागू होती हैं, जो अन्य प्रशासनिक अधिकारियों पर होती हैं। यह बात सही है कि हँसते-मुस्कराते सुन्दर चेहरों को पेश कर स्वागत करना ही जनसंपर्क है, लेकिन बदलते जमाने के साथ रिसेप्शनिस्ट और जनसंपर्क अधिकारी' में अंतर तो होना ही चाहिए। एक पेशेवर पीआरओ की छवि अब केवल मुस्काने वाले मेजबान की ही नहीं रह गयी है बल्कि निरन्तर जटिल होती व्यावसायिक दुनिया में उसकी छवि एक जिम्मेदार व सोफिस्टिकेटेड के रूप में होने लगी है। आज जैसे जनसंपर्क के लिए जनसूचना, निवेश संपर्क, कर्मचारी संपर्क, मार्केटिंग उत्पाद प्रचार, लोकहित मामले, विशेषज्ञों ग्राहक सेवा संपर्क तथा कॉर्पोरेट कम्युनिकेशन आदि नाम दिये जाने लगे हैं, उसी तरह पीआरओ को अब “स्पिन डॉक्टर्स' कहा जाने लगा है, क्योंकि अब संगठन के सभी स्तरों के व्यक्तियों से निरन्तर संपर्क में रहने के कारण पीआरओ की भूमिका केन्द्रीय मानी जाने लगी है। 


जनसंपर्क अधिकारी के गुण 

  • सकारात्मक : जनसंपक अधिकारी की सोच हमेशा सकारात्मक होना चाहिए। उसमें ऐसे गुण होने चाहिए कि उससे मिलने के बाद हर आगंतुक को यह लगने लगे कि जिस कार्य से वह आया हैं, वह जरूर होगा। सामने वाला कितना ही झुँझलाया हो, क्रोधित हो या चिड़चिड़ा हो उसकी बात धैर्यपूर्वक सुनना चाहिए और अत्यन्त विनम्रता के साथ पेश आना चाहिए। प्रबंधन के किसी निर्णय से कर्मचारियों में यदि क्षोभ  उत्पन्न हो, तो उन्हें समझा-बुझाकर हर हाल में टकराव  को टाला जाना चाहिए। प्रबन्ध तंत्र को असंतोष के मुद्दों से वाकिफ कराकर, जो भी कर्मचारियों के हित में हो, वैसा निर्णय कराने की कला में माहिर होना चाहिए । 


  •  मीडिया प्रबंधन : मीडियाकर्मियों के साथ जनसंपर्क अधिकारी का संबंध बहुत प्रगाढ़ एवं व्यक्तिमत होना चाहिए। उन्हें कोई भी सूचना देते समय न तो तथ्यों को छिपाना चाहिए और न ही बढ़ा-चढ़ाकर ही कोई बात करनी चाहिए। अपने फेवर में करने के लिए मीडियाकर्मियों को तो कोई प्रलोभन देना चाहिए, न ही उन्हें पथभ्रष्ट करना चाहिए। मीडियाकर्मियों के साथ-साथ विज्ञापन एजेंसियों से भी उनके रिश्ते मधुर होने चाहिए । 
  •  संगठन का विस्तृत ज्ञान : जनसंपर्क अधिकारी को अपने संगठन की राई-रत्ती की खबर रखनी चाहिए। मसलन, संगठन का इतिहास, उसकी संरचना उसका स्वरूप उसके प्रशासनिक एवं कार्मिक तंत्र: उसकी मौजूदा स्थिति, भावी योजनाएँ, उसकी आर्थिक स्थिति आदि का पूरा ब्यौरा उसके दिमाग में होना चाहिए। हर संगठन से भी  यह उम्मीद की जानी  चाहिए कि उसकी छोटी से छोटीऔर बड़ी से बड़ी सभी जानकारियाँ जनसंपर्क के कार्यालय मे पहुँच जानी चाहिए। जनसंपर्क कार्यालय संगठन से वेल कनेक्टेड होना चाहिए सेताकि जरूरत  पड़ने पर कीसी  से कोई सूचना ले सके। 

  •  इंमानदार : जनसंपर्क अधिकारी को उच्च नैतिक मूल्यों का पक्षधर होना चाहिए कर दी गई कोई सूचना, विचार या दस्तावेज तथ्यों पर आधारित होना चाहिए। लार्ड ज नो ने कहा है कि एक मनुष्य को ईमानदार होना चाहिए। उसे किसी चीज की सत्यता प्रमाणित करने के पह उचित जाँच-पड़ताल भी करनी चाहिए। 

  • नियम-कानून का ज्ञान : जनसंपर्क अधिकारी को कम्पनी की कार्यप्रणाली से संबंधित कंपनीज़ एक्ट 1956 और कंडक्ट डिसिप्लिन ऐंड अपील-रूल्स आदि की पूरी जानकारी होनी चाहिए। यदि वह किसी व्यावसायिक प्रतिष्ठान से इतर किसी अन्य प्रशासनिक संगठन का जनसंपर्क अधिकारी है, तो उसे उस संगठन विशेष नियमों, परिनियमों की पूर्ण जानकारी होनी चाहिए । 

  •  संतुलित एवं दृढ़प्रतिज्ञ : जनसंपर्क अधिकारी का व्यक्तित्व संतुलित होना चाहिए। संतुलित से तात्पर्य हर निर्णय के पीछे तार्किक दृष्टिकोण से है। एक बार निर्णय ले ले, उस पर उसे दृढ़ हा चाहिए। लेकिन दृढ़ भी वह तभी होगा, जब खूब विचारकर तार्किक आधार पर निर्णय लेगा । 

  •  गोपनीयता एवं सतर्कता : जनसंपर्क अधिकारी को प्रबन्ध तंत्र की ओर से बहुत से गोपनीय दायित्व व दिशा निर्देश दिये जाते हैं, जो अत्यन्त जटिल एवं संवेदनशील मुद्दों के अलावा विशेष अभियानों से संबंधित होते हैं। इनकी गोपनीयता भंग न होने पाये, इसका ध्यान रखते हुए उसे प्रबन्ध तंत्रों के आदेशों का पालन करना चाहिए। इस विशेष गुण के अलावा जनसंपर्क अधिकारी को संगठन के उद्देश्यों व लक्ष्यों के प्रति सदैव सतर्क रहना चाहिए । जनता, मीडिया, आलोचकों, विरोधियों और प्रतिस्पर्द्धियों की हर चाल की खबर रखना और अपने प्रबन्ध तंत्र को हर परिस्थितियों से निपटने के लिए सतर्क करने रहना चाहिए। 
  •  निपुण एवं दूरदर्शी : 'निपुणता' जनसंपर्क अधिकारी का अनिवार्य गुण है, क्योंकि उसके जिम्में संगठन की छवि निर्माण का काम, जनता से संपर्क, मीडिया से संबंध, अतिथियों का सत्कार, हाउस जर्नल का संपादन तथा जिला प्रशासन से जुड़े कई तरह के काम होतें हैं और इन सभी कामों में यदि अपने प्रबन्ध तंत्र के हित एवं विकास के लिए अभियान चलाने, योजनाओं एवं नीतियों को अमली जामा पहनाने के मामले में दूरदर्शी तो होना ही चाहिए, व्यावहारिक भी होना चाहिए ।
  • आतिथ्य सत्कार : एक अच्छे जनसंपर्क अधिकारी का यह बुनियादी गुण है कि वह अपने अतिथियों का स्वागत-सत्कार करने वाला हो। उनकी बातें विनम्रता, शालीनता और ध्यानपूर्वक सुनता हो । अतिथियों को यह नहीं लगना चाहिए कि वह उनके प्रति उदासीन है, अनासक्त है या सिर्फ अपने मतलब कीं ही बात कर रहा है। ऐसा नहीं है कि ऐसा व्यवहार वह केवल अतिथियों के साथ हीं करता है, बल्कि ऐसे आगन्तुक के साथ उसका व्यवहार उतना ही मधुर होना चाहिए । 


  • प्रत्युत्पन्नमति वाला : जनसंपर्क अधिकारी प्रत्युत्पन्नमति वाला व्यक्ति होना चाहिए, क्योंकि संभव है उसके सामने ऐसी विषम परिस्थितियाँ आ जाएँ जिनमें वह अपने को घिरा हुआ महसूस करे। लेकिन ऐसी परिस्थितियों में उसकी हाजिर जवाबी ही उसे बचा सकती है, बशर्ते अपनी मेधा के इस्तेमाल के साथ वह संयमशील बना रहे तथा हँसी-मजाब के साथ ऐसा उत्तर दे कि सवाल करने वाला भी उसका कायल हो जाए। दरअसल, लोकमत का निर्माण करने में जनसंपर्क अधिकारी की सबसे अहम भूमिका होती हैं, इसलिए प्रबन्ध तंत्र की अच्छी छवि पर आँच न आए, इसका उसे सदैव ध्यान रखना चाहिए 


  • 4. बहिर्मुखी व्यक्तित्व : बिना बहिर्मुखी व्यक्तित्व के कोई भी जनसंपर्क अधिकारी अपने लक्ष्य में सफल नहीं हो सकता। गुमसुम बैठने वाले दार्शनिक मिजाज के व्यक्ति के लए यह पद ही नहीं, क्योंकि उसे हँसमुख तो होना ही चाहिए। आगे बढ़कर लोक-संपर्क करने वाला भी होना चाहिए। जिस भी संगठन से वह जुड़ा हो, उसकी नीतियों, उसके कार्यक्रमों और अभियानों के प्रचार-प्रसार की जिम्मेदारी उसके ऊपर होती है। इसलिए उसे बहुत सक्रिय होना चाहिए। 
  • . बहुमुखी प्रतिभा : जनसंपर्क अधिकारी को क्योंकि हाउस जर्नल का संपादन करना पड़ता है, इसलिए उसमें एक कुशल लेखक, कुशल संपादक के तो गुण होने ही चाहिए, उसे समाचार बनाने, रिपोर्टिंग करने, विज्ञापन तैयार करने की कला भी आनी चाहिए। किसी भी संगठन के अन्दर समय-समय पर सांस्कृतिक, शैक्षिक, साहित्यिक कार्यक्रम तो आयोजित किये ही जाते हैं, राष्ट्रीय पर्वों के अलावा युग पुरुषों के जन्मदिन वगैरह भी मनाये जाते हैं। इन कार्यक्रमों के सफल आयोजन एवं संचालन का गुण भी जनसंपर्क अधिकारी में होना चाहिए। यदि वह कुशल वक्ता नहीं है, तो इन कार्यक्रमों का संचालन भी शायद ही कर पाये। यानी कि हर जनसंपर्क अधिकारी को बहुमुखी प्रतिभा का धनी होना चाहिए । 
जनसंपर्क के साधन 
जनसपंक के निम्न साधन हैं : 
    • 1. परंपरागत माध्यम : लोकगीत, लोकनृत्य, लोककथा, नाटक, कठपुतली, रामलीला, रासलीला आदि। 
    • 2. मुद्रित माध्यम : समाचार पत्र व पत्रिकाएँ आदि। 
    • 3. इलैक्ट्रॉनिक माध्यम : रेडियो, टी.वी.. फिल्म एवं अन्य दृश्य-श्रव्य साधन | 
    • 4. जनसंपर्क अधिकारी : जनसंपर्क अधिकारी स्वयं एक माध्यम है, जो अपने संगठन या संस्था के उद्देश्यों, कार्यक्रमों एवं अभियानों कीं जानकारी जनता तक पहुँचाता है। 
    • 5. मौखिक माध्यम : सभाएँ, वार्तालाप, उद्बोधन एवं व्यक्तिगत संपर्क । 
    • 6. प्रेस-विज्ञप्ति : विभिन्‍न संस्थाओं, संगठनों व राजनीतिक दलों द्वारा अपने कार्यक्रमों, उद्देश्यों, नीतियों और गतिविधियों की जानकारी देने के लिए प्रेस को जो सूचना जारी की जाती है, उसे प्रेस नोट या विज्ञप्ति कहते हैं । 
    • 7. पत्रकार सम्मेलन : विभिन्‍न राजनीतिक दलों, संगठनों नेताओं, मंत्रियों तथा उच्च अधिकारियों द्वारा नवीनतम घटनाक्रमों की जानकारी देने के लिए पत्रकारों को एक निश्चित स्थान पर आमंत्रित किया जाता है, उसे 'पत्रकार-सम्मेलन' या 'प्रेस मीट' कहा जाता है।
    • 8 विज्ञापन : अपने संगठन या अधिष्ठान के उत्पादों के प्रचार के लिए विभिन्‍न प्रकार की डिजाइनों, क। पोस्टरों, होर्डिग्स आदि का इस्तेमाल। अपने विज्ञापन के लिए कुछ संगठन उपहार स्वरूप ; डायरी, पेन, प्रिंड शर्ट और कैप आदि का भी इस्तेमाल करते हैं। 
    • 9 प्रयोजन  : बहुत से संगठन राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रमों का प्रायोजन करते : जैसे- क्िक्रेट विश्वकप, रिलायंस ग्रुप, आई टी सी संगीत सम्मेलन 
    • 10. प्रदर्शनियाँ : अपने उत्पादों के प्रचार-प्रसार के लिए कितनी ही कंपनियाँ कई तरह की प्रदर्शनियों का आयोजन करती हैं, जैसे- फोटो प्रदर्शनी, उत्पाद प्रदर्शनी, ट्रेड फेयर तथा विविध उत्सवों, त्योहारों, पर्वों एवं समारोहों के अवसर पर प्रचार बेनरों का प्रदर्शन आदि | 
    • 11. गूह पत्रिका : उपरिउक्त सभी माध्यमों के अलावा प्रायः हर औद्योगिक प्रतिष्ठान, व्यापारिक संस्थान या संगठन अपने सदस्यों, कर्मचारियों और ग्राहकों के हित में अपनी स्वयं की एक पत्रिका प्रकाशित करते हैं, जिसे गृहपत्रिका कहते हैं। निश्चय ही ऐसी पत्रिकाओं का प्रकाशन आर्थिक लाभ की दृष्टि से न करके सौमनस्य स्थापित करते के लिए ही किया जाता हैं। टाटा, दा मोदी आदि के प्रतिष्ठानों, जीवन बीमा निगम और खाद्य निगम द्वारा प्रकाशित पत्रिकाएँ इसी कोटि में आती हैं। 


      सम्पादन कला 
      प्रिन्ट मीडिया 
      प्रिन्ट मीडिया के तहत समाचार पत्र, पत्रिकाएँ, जर्नल, पुस्तकें और पोस्टर आदि सब कुछ आते हैं और इनमें सबकी सम्पादन कला की अपनी अलग-अलग विशेषताएँ होती हैं, लेकिन शैलीगत भिन्‍नताओं के बावजूद तथ्यात्मकता, भाषा और व्याकरण की शुद्ध एवं विश्वसनीयता इस माध्यम की खासियतों में शामिल है। इनके प्रस्तुतीकरण में भले अन्तर हो, लेकिन जनता में अन्य संचार माध्यमों की तुलना में इनकी प्रामाणिकता ज्यादा है, इनमें स्थायित्व ज्यादा है। समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में जहाँ समाचारों और समाचार कथाओं की बहुलता होती है, वहीं साहित्यिक पत्र एवं पत्रिंकाओं में कविताएँ, कहानियाँ एवं लेख होते हैं, पुस्तकों का इतना विस्तार है कि जितने विषय हैं, उतनी पुस्तकें हैं, यानी विषयवार पुस्तकों के सम्पादन की योग्यताएँ भी अलग-अलग हैं। पेंपलेट और पोस्टर तैयार करने वालों में अलग तरह की योग्यताएँ होती हैं और उनके सम्पादन से जुड़े लोग भी पत्र-पत्रिकाओं या पुस्तकों के लोखकों या सम्पादकों से भिन्न योग्यता रखते हैं। यह जरूरी नहीं कि जो अच्छा लेखक या रिपोर्टर हो या उनके संपांदन से संबंध रखता हो, वह पेंपलेट और पोस्टर भी अच्छा बना लेता है। शोध-पत्रिकाओं के लेखकों और सम्पादकों में अपनी ही तरह की खूबियाँ होती हैं। इसी तरह विज्ञान, तकनीक कानून, ज्योतिष और तन्त्र-मन्त्र से सम्बन्धित पत्रिकाओं के लेखक और सम्पादक भी अपनी अलंग खूबियाँ रखते हैं । 

      इलैक्ट्रॉनिक मीडिया 
      इलैक्ट्रॉनिक मीडिया के अन्तर्गत श्रव्य एवं दृश्य दोनों माध्यमों का शुमार होता हैं। श्रव्य संचार माध्यम के अन्तर्गत जहाँ रेडियो, आडियो कैसेट, टेप रिकॉर्डर आदि आते हैं, वहीं श्रव्य एवं दृश्य संचार माध्यम के अन्तर्गत टेलीविजन, वीडियो कैसेट एवं फिल्म आदि की गिनती की जाती है। 

      इलैक्ट्रॉनिक मीडिया के अन्तर्गत ही आजकल नव इलैक्ट्रॉनिक माध्यम जिसके तहत इंटरनेट प्रमुख है, की गणना की जाती है| 

      रेंडियों 
      इन माध्यमों में रेडियो को पत्रकारिता की दृष्टि से “श्रव्य समाचार पत्र' कहा जा सकता है; क्योंकि यह माध्यम समाचारों-सूचनाओं को आकाश में प्रसारित कर सुनाता है। यह माध्यम श्रवणेन्दियों के जरिए सारी दुनिया की बातें श्रोता तक पहुँचाता है। सुदूर दुर्गम स्थानों तक में रहने वालें लाखों-करोड़ों लोग बाहरी दुनिया से जुड़ जाते हैं, जहाँ तक या तो मुद्रण-माध्यम की रसाई नहीं है या जहाँ निर्धनता के कारण दूरदर्शन वगैरह पहुँच नहीं पाये हैं। जैसे प्रिन्ट मीडिया के तहत समाचार पत्र, पत्रिकाएँ, जर्नल, पुस्तकें, पेम्पलेट और पोस्टर के लेखन एवं सम्पादन की अलग-अलग विधियाँ और खासियतें हैं। उसी प्रकार रेडियो के भी विभिन्‍न कार्यक्रम है, जिन्हें विविध विधाएँ भी कह सकते हैं, जिनकी स्क्रिप्ट तैयार करने एवं सम्पादन करने के लिए एक लम्बी-चौड़ी टीम होती हैं, जिनकी अलग-अलग खासियतें होती हैं। यदि समाचारपरक कार्यक्रम है, जिसके तहर समाचार, न्यूजरील या रेडियो रिपोर्ट शामिल है, तो उसका सम्पादक अलग तरह की योग्यता रखता है। लेकिन यदि वार्तापरक कार्यक्रम है, जिसमें साहित्यिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक, राजनीतिक, आर्थिक-सामाजिक या खेल एवं अन्य समसामयिक विषयक वार्ताएँ हैं, तो उनके लिए सम्पादन की एक खास शैली की जरूरत पड़ती है। यदि वार्ताओं से थोड़ा हटकर वार्तालापपरक कार्यक्रम है जिसके अन्तर्गत इंटरव्यू. बातचीत या परिचर्चा तथा संगोष्ठी शामिल है, उसका सम्पादन करने वाले अलग तरह की खासियतें रखते हैं। इसी तरह गीत-संगीत या मनोरंजनपरक कार्यक्रम जिसके तहत शास्त्रीय गीत-संगीत, फिल्‍मी गीत-सैंगीत या लोकगीत-संगीत आते हैं, के सम्पादक अलग होते हैं। ऐसे ही यदि साहित्यिक 'कार्यक्रम हुआ, जिसके अन्तर्गत कहानी पाठ, कविता पाठ एवं कवि सम्मेलन, दर एवं रूपक तथा झलकी आदि का शुमार है, के लिए सम्पादन की कुछ अलग विशेषताएँ होती हैं। पत्रिका एवं युवा पत्रिका शामिल है, उसका स्क्रिप्ट लेखन एवं सम्पादन-संयोजन कुछ अलग ढंग: से होता हैं।



      टेलीविजन 
      जैसे श्रव्य संचार माध्यमों में रेडियो का महत्व है, वैसे ही श्रव्य-दृश्य जनमाध्यमों में टेलीविजन का महत्वपूर्ण स्थान है। लेकिन रेडियो के जरिए केवल हम सुन सकते हैं, जबकि टीवी के जरिए सुन भी सकते हैं और स्क्रीन पर उभरती इबारतों को पढ़ भी सकते हैं। उद्देश्य प्रायः दोनों के एक जैसे हैं- मनोरन्जन, सूचना और समाचार। लेकिन एक बात तय है कि टेलीविजन का अभूतपूर्व विस्तार हुआ है। सुधीश पचौरी का कहना है कि इन दिनों भारतीय जनता को कम से कम 22 से ज्यादा चैनल उपलब्ध हैं। इनमें हिन्दी, अंग्रेजी, बंगला, तमिल, बिहारीं, मलयालम, तेलुगु, उर्द, असमिया, गुजराती, कश्मीरी, पंजाबी, राजस्थानी, कन्नड़, मराठी, उड़िया, इत्यादि भाषाओं के चैनल तो शामिल ही हैं, कुछ चीनी, अरबी, जर्मन, फ्रांसीसी, रूसी भाषाओं के भी चैनल शामिल हैं । आगे डा वाले दिनों में 'कैस' और 'डीटीएच' के आने के बाद इन चैनलों की संख्या और भी बढ़ जाएगी | 

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